SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८० आनन्दघन का रहस्यवाद कर्ता कहा है।' नियमसार' एवं पंचास्तिकाय में भी उन्होंने आत्मा के कर्तृत्व और भोक्तृत्व पक्ष पर प्रकाश डाला है। किन्तु इसके साथ ही उन्होंने शुद्ध निश्चय नय (द्रव्यार्थिक दृष्टि) की अपेक्षा से आत्मा को अकर्ता कहा है। इसके अतिरिक्त वृहन्यांसह, प्रमाणनय तत्त्वालोक आदि ग्रन्थों में आत्मा के कर्तृत्व एवं भोक्तृत्व पर विचार किया गया है। निषेधात्मक रूप से प्रात्मा के स्वरूप पर विचार जैन-धर्म में आत्मा के स्वरूप का :निषेधात्मक वर्णन सर्वप्रथम आचारांग में दृष्टिगोचर होता है। उसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि (आत्मा) न दीर्घ है, न हृस्व है, न वृत्त है, न त्रिकोण है, न चतुष्कोण है और न परिमण्डल है। वह न कृष्ण है, न नीला है, न लाल है, न पोला है और न शुक्ल आदि । आचारांग के अतिरिक्त समयसार', ".::: आदि में भी आत्मा के निषेधात्मक स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। १. णवि कुव्वइ कम्मगुणे जीवो कम्मं तहेव जीवगुणे । अण्णोण्णणिमित्तेण दु परिणाम जाण दोहंपि ॥ एएण कारणेन दुकत्ता आदा सएण भावेण । पुग्गल कम्म कयाणं ण दुकत्ता सव्व भावाणं ॥ -समयसार, कृतकर्माधिकार, गाथा ८१-८२ । २. कत्ता भोत्ता आदा पोग्गल कम्मस्स होदि ववहारो। कम्मज भावेणादा कत्ता भोत्ता दुणिच्छयदो ।। -नियमसार, गाथा १८ । ३. पंचास्तिकाय, द्रव्याधिकार, गाथा ५७ । ४. णिच्छयणस्स एवं आदा अप्पाणमेव हि करेदि । वेदयदि पुणोतं चैव जाण अत्ता दु अत्ताणं ॥ -समयसार, गाथा ८३ । ५. बृहद् द्रव्य संग्रह, २।८९ ६. प्रमाणनय तत्त्वालोक, ७१५६ ७. आचारांग, ११५।६ एवं स्थानांग, ५।३१५३० ८. समयसार, गाथा ४९-५५ एवं नियमसार, १७८-१७९ । ९. परमात्म-प्रकाश, गाथा ८६-९३ ।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy