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________________ २६ विस्मय पुलक एव प्रमोद सद्वस्तु की प्राप्ति के हर्पातिरेक को सूचित करते हैं । अवभ्रमरण का भय ही हर्पातिरेक को उत्पन्न करने वाला है । भव भ्रमण का भय जितना तीव्र होगा उतनी ही भाव की वृद्धि अधिक होगी एव भाव की वृद्धि जितनी अधिक उतनी ही आराधना मे सावधानी एव एकाग्रता अधिक । इस प्रकार प्रमृत क्रिया के सभी लक्षण नमो पद की आराधना मे घटित होने हैं । नमो पद का आराधक नमस्कार को विधि सम्हालने मे सावधान इसलिए होता है कि उसके हृदय मे भव का भय है । इससे धर्म एव धर्म सामग्री पर वह प्रेम धारण करता है एव यह प्रेम विस्मय, पुलक एव प्रमोद मे अभिव्यक्त होता है । समय का अर्थ है समयविधान शब्द के दो अर्थ निकलते हैं जिस समय जो काम करने को कहा गया है उस समय वही करना—“काले काल समाचरेत् ।" योग्य काल को सयोजित करना यह प्रथम श्रर्थ है । समय का दूसरा अर्थ सिद्धान्त है । सिद्धान्त मे कहे हुए विधि-विधानानुसार धर्मानुष्ठान का श्राचरण करना ही समय विधान है । विधि-विधान मे स्थान मुद्रा आदि जिस प्रकार संयोजित करने के लिए कहा हो उसी प्रकार सयोजित कर क्रिया करना । इस प्रकार काल, देश, मुद्रा आदि का सयोजन करना समय विधान है। भाव की वृद्धि चित्त की एकाग्रता श्रादि है । अर्थ का आलोचन गुरणों के प्रति राग एव एकाग्रता लाने के साधन हैं । नमो मंत्र की अर्थ भावना अर्थ भावना से युक्त मंत्रजाप विशिष्ट फलदायक होता है । नमस्कार महामंत्र की अर्थ भावना अनेक प्रकार से विचारी जा सकती है । नमो पद पूजा के अर्थ मे है एव पूजा द्रव्य भाव
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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