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________________ वाला भी है। उसका परिणाम तद्गतचित्त में आता है। अर्थात् चित्त मे एकाग्रता लाने हेतु भी नमो पद परम साधन बनता है । भव का सच्चा भय तो तभी गिना जाता है जब तन्द्रित मनुष्य को यो लगे कि मेरा घर जल रहा है एव वह एकदम हक्का बक्का होकर उठे उस समय उसे जैसा भय लगता है वैसा भय ससार रूपी दावानल मे से मुक्त होने हेतु जब उत्पन्न हो जाय तब उसमे सच्चा भव-भय उत्पन्न हुआ गिना जाय । खुद का घर जल रहा हो और मनुष्य हक्का बक्का होकर उठे वैसे ही मोहनिद्रा मे सोया हुआ जीव कर्म दावानल के दाह मे से उबरने हेतु धर्मजागृति का अनुभव करे। वह सच्चा भव-भय है । यह नमो पद नमस्कर्ता के अन्तर मे जागे हुए भव-भय का सूचक है। जहा भय होता है वहाँ प्रतिपक्षी वस्तु पर भाव या प्रेम उत्पन्न होता है। उसी प्रकार भव से भय प्राप्त जीव को प्रात्मतत्त्व पर प्रेम होता है एवं उस प्रेम का सूचक भी नमो पद होता है। सच्चा प्रेम प्रिय वस्तु को ध्यान मे लाता ही है और उसे साधने हेतु विधिविधान में सावधान बनाता ही है । नमो पद के साथ वह सावधानी एव एकाग्रता भी सयुक्त ही है। इसीलिए यह नमो सावधानी एव तन्मयता का भी प्रतीक बन जाता है। इस प्रकार अमृत किया को सूचित करने वाले जितने लक्षण शास्त्र मे कहे गए हैं वे सव नमो पद के आराधक मे आने वाले हैं और तभी नमो पद सार्थक बनता है। अमृत क्रिया के लक्षण तद्गत चित्तने समयविधान, भावनी वृद्धि भव भय अति घणो, विस्मय पुलक प्रमोद प्रधान, लक्षण ऐ छे अमृत क्रिया तणों । उपा० श्री यशोविजयजी महाराज
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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