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________________ MD २२ असग भाव लाता है । कहा है कि जेह ध्यान अरिहंत को, तेहीज आतम ध्यान । फेर कछु इणमैं नहिं एहिज परम निधान ।। ज्ञान ध्यान एवं समता प्रत्येक पर्याय में द्रव्य अनुस्यूत है, द्रव्य मे गुण की प्रधानता है तथा गुण मे ज्ञान की प्रधानता है। प्रानन्द ज्ञान से भी श्रेष्ठ है । द्रव्य सामान्य वृद्धिकारक है, गुरग सामान्य एकत्वकारक है तथा पर्याय सामान्य तुल्यताकारक है । इस प्रकार द्रव्य गुण पर्याय से परमात्म का ध्यान ही आत्मा का ध्यान है। इस प्रकार होता आत्म-ध्यान वृद्धिकारक, एकत्वकारक तथा तुल्यताकारक होने से अनन्त समता को अर्पित करने वाला है । समता-समभाव-समानवुद्धि आदि एकार्थक है । मोक्ष का अनन्तर कारण समता है। समता को मोक्ष का भाव-लिंग भी कहा गया है । वही समता आत्म ध्यान से प्राप्त होती है। न साम्ये विना ध्यानं, न ध्यानेन विना च तत् निष्कम्पं जायते तस्मात् , द्वयमन्योन्यकारणम् । अर्थात् समता के विना प्रात्मध्यान तथा प्रात्मध्यान के विना निष्कम्प समत्व नही । अर्थात् ध्यान के विना समता भाव मे निश्चलता प्राप्त नही होती है । अत ध्यान का कारण समता तथा समता का कारण ध्यान है। ____ इस प्रकार घ्यान और समता परस्पर कार्यकारण-भाव को प्राप्त कर वृद्धि को प्राप्त होते है । वृद्धि एकता एवं तुल्यता द्रव्य से होने वाला आत्मघ्यान वृद्धिकर होता है। अर्थात् शुभ भाव की वृद्धि करता है, गुण से होने वाला ध्यान भाव से एकत्व स्थापित करता है तथा पदार्थ से होता ध्यान भाव के
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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