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________________ Oram २८. जान-ध्यान एवं समता २६ वृद्धि, एकता एव तुल्यता ३०. चिन्मात्र समाधि का अनुभव ३१. नमो पद मे निहित अमृतक्रिया ३२ अमृतक्रिया के लक्षण ३३ नमो मत्र की अर्थभावना ३४. श्री नमस्कारमत्र मे पुण्यानुवधी पुण्य ३५ नमस्कार शास्त्रो का महान् आदेश ३६ शुद्ध चिद्र परत्न ३७ ज्ञानादि से एकता एव रागादि से भिन्नता ३८. दु ख भावित ज्ञान ३६ सत्सग से निस्तरग अवस्था का कारण ४० पालम्वन के प्रति आदर ४१. एकत्व पृथकत्व विभक्त आत्मा ४२ चैतन्य की साधना का पथ ४३ तात्त्विक भवनिर्वेद एव मोक्षाभिलाप ४४. एक मे सव एव सत्र मे एक ४५ तात्त्विक नमस्कार ४६ पापनाशक एव मगलोत्पादक मत्र ४७ सुख-दु ख-ज्ञाता एव राग-द्वेष द्रष्टा ४८. भक्ति एव मैत्री का महामात्र .४६ प्रथम पद मे समग्र मोक्षमार्ग ५०. सात धातु एव दश प्राण ४१. परमात्म समापत्ति ५२. मत्रात्मक दो पद ५३. नमामि सव्वजीवाण ५४. खमामि सव्वजीवाण
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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