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________________ से स्वय की शुद्ध आत्मा के ध्यान का कारण बनता है । 'कारण से कार्य उत्पन्न होता है' वाले न्याय से अरिहंत तथा सिद्ध परमात्मा के ध्यान से सकल कर्म का क्षय होने से स्वय का शुद्ध स्वरूप प्रकट होता है। कर्मक्षय का असाधारण कारण शुद्ध स्वरूप का ध्यान है। कहा गया है कि -- मोक्ष कर्मक्षयादेव, स चात्मज्ञानतो भवेत् । ध्यानसाध्यं मत तच्च, तद् ध्यानं हितमात्मन. ।। सकल कर्म के क्षय से मोक्ष उत्पन्न होता है तथा सकल कर्म का क्षय आत्मज्ञान से होता है । आत्मज्ञान परमात्मा के ध्यान से प्रकट होता है जिससे स्वय के शुद्ध आत्म-स्वरूप का लाभ रूप मोक्ष प्राप्त करने हेतु परमात्मा के ध्यान मे लीन होना चाहिए क्योकि वह ध्यान ही आत्मा को मोक्ष सुख का असाधारण कारण होने से अत्यन्त हितकारी है। स्वरूप की अनुभूति अरिहतादि चारो की शरण शुद्ध आत्म-स्वरूप का स्मरण कराने वाली होने से तथा उनके ध्यान मे ही तल्लीन कराने वाली होने से तत्त्वत. शुद्ध आत्म-स्वरूप की ही शरण है। शुद्ध आत्म-स्वरूप की शरण ही परम समाधि को प्रदान करन वाली होने से परम उपादेय है। इसकी पात्रता दुष्कृत की गर्दा तथा सुकृतानुमोदन से प्राप्त होती है। अतः दुष्कृतगर्दा तथा सुकृतानुमोदना भी उपादेय है । दुष्कृत-गर्दा तथा सुकृतानुमोदना सहित अरिहंतादि चार की शरण भव्यत्व परिपाक के उपाय के रूप मे शास्त्र मे
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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