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________________ अतः वह शून्यता, पूर्णता व एकता की भावना उत्पन्न कर जीव को भक्ति, वैराग्य व ज्ञान से परिपूर्ण बनाता है। पूर्णता का बोध भक्तिप्रेरक है, शून्यता का बोध वैराग्यप्रेरक है एवं एकता का बोध तत्त्वज्ञान का प्रेरक है। चतुर्थ गुण स्थानक में भक्ति की प्रधानता, छ? गुण स्थानक मे वैराग्य की प्रधानता एवं उससे ऊपर के गुण स्थानको मे तत्त्वज्ञान की मुख्यता मानी गई है । प्रथम पद इस प्रकार सर्व गुण स्थानको के लिए योग्य साधना की सामग्री पूरी करता है अत उसे मिद्धान्त का सार रूप कहा जाता है। इच्छायोग-शास्त्रयोग-सामर्थ्ययोग नवकार के प्रथम पद मे इच्छायोग, शास्त्रयोग व मामर्थ्ययोग इन तीनो प्रकार के योगो का समावेश है । नमो पद इच्छायोग का प्रतीक है, अरिह पद शास्त्रयोग का प्रतीक है व ताण पद सामर्थ्ययोग का प्रतीक है। इच्छायोग प्रमादी ज्ञानी की विकल-अपूर्ण क्रिया है, शास्त्रयोग अप्रमादी ज्ञानी की अविकल क्रिया है व सामर्थ्य योग इनसे भी विशेष अप्रमत्तभाव को धारण करने वालो की शास्त्रातिक्रान्त प्रवृत्ति है । ___'नमो' पद शास्त्रोक्त क्रिया की इच्छा दर्शित करता है अत प्रार्थना स्वरूप है, 'अरिह' पद शास्त्रोक्त क्रिया का स्वरूप वताता है अत स्तुति स्वरूप है व 'ताण' पद शास्त्रोक्त मार्ग पर चलकर उसका पूर्णफल बताता है अत उपासना स्वरूप है। इस प्रकार नवकार के प्रथम पद मे सदनुष्ठान का प्रार्थना रूप इच्छायोग, सदनुष्ठान की स्तुतिरूप शास्त्रयोग व सदनुष्ठान की उपासना रूप सामर्थ्ययोग गुम्फित (ग्रथित) होने से तीनो प्रकार के योगियो को उत्तम आलम्बन प्रदान करने मे समर्थ है।
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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