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________________ , -- - 'नमो' पद का रहस्य : ... 'नमो' में नम्रता. है, विनय है, विवेक है .तथा वैराग्य भी है, तप स्वाध्याय तथा ईश्वरभक्ति भी है। साथ ही दुष्कृत की गर्हा, सुकृत की अनुमोदना तथा श्री अरिहतादि की शरण भी है। . ___ नमन करना अर्थात्, मात्र मस्तक को झुकाना ही नहीं पर मन को, मन के विचारो को, मन की इच्छाओ को तथा मन की तृष्णाओ को भी नमित करना अर्थात् उनको तुच्छ गिनना है। : । मात्र हाथ जोडना ही नही पर अन्तकरण मे एकता-अभेद 'की भावना करनी चाहिए। - नम्रता' का अर्थ है अहभाव का सम्पूर्ण नाश तथा बाह्य विषयो मे अपने अहत्व की बुद्धि का सर्वथा विलय । शून्यवत् होने से पूर्ण बना जाता है। कुछ होना चाहिए अर्थात् सबसे अलग पडना चाहिए । कुछ भी नहीं रहना अर्थात् परमात्मतत्त्व में मिल जाना। - समुद्र में रहने वाली बूंद समुद्र की महत्ता भोगती हैं। समुद्र से अलग होकर जब वह अपनेपन का दावा करने जाती है तब वह तुरन्त सूख जाती है उसका अस्तित्व मिट जाता है। 'नमो , पद मे गुप्त स्हस्य क्या है यह इसी से प्रकट होता है। ____नमस्कार से दर्शन की शुद्धि होती है अर्थात् कर्मकृत अपनी हीनता, लघुता या तुच्छता का दर्शन होता है तथा परमात्मतत्त्व की उच्चता, महत्ता तथा भव्यता का भाव होता है जिससे “अहभाव का फोडा फूट जाता है, तथा , ममताभाव का मवाद निकल जाता है परिमारण स्वरूप जीव को परम शान्ति का अनुभव होता है।
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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