SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फल का भी स्मरण तथा अनुमोदन है। यह स्मरण जितनी वार अधिक किया जाय उतना ही अधिक लाभ होता है. यह बात निश्चित है। द्रव्यमगल सदिग्ध फल वाले है। भावमगल अस दिग्ध फल वाले हैं । यह नवकार सभी भावमगलो का भी नायक है। नायक का अर्थ है कि जिसके अस्तित्व मे ही दूसरे मगल भावमगल बनते हैं। मगल के मगल वने रहने के कारण चैतन्य की भक्ति एवं जड की विरक्ति है। नवकार की मगलमयता चैतन्य के श्रादर मे तथा जड के अनादर मे है। जडतत्त्व का प्रेम जीव को दुख दायक होता है। चैतन्यतत्त्व का प्रेम जीव को सुखदायक होता है। , नमस्कार रूपी रसायन का पुन पुन सेवन जड के प्रति आसक्ति दूर करता है तथा चैतन्यतत्त्व की भक्ति विकसित करता है अत वह सर्व मगलो का मागल्य तथा सर्व कल्यारणो का कारण है। . हितैषिता ही विशिष्ट पूजा ... अयोग्य को नमन करने वाले तथा योग्य को नहीं नमन करने वाले को ऐसी योनियाँ मिलती है कि जिसमे अनिच्छा से भी सदा नमन करना पड़ता है । वृक्ष के तथा तिर्यञ्च के भव इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है। नमस्कार से धर्मवृक्ष का मूल मीचा जाता है। साधुधर्म तथा गृहस्थ धर्म इन दोनो प्रकार के धर्मों के मूल मे सम्यक्त्व है तथा वही देवगुरु को नमस्कार रूप है। ___माता पिता को नमन ही सतताभ्याम है, देवगुरु को नमन ही (देवगुरु आदि प्रशस्त विषयो का अभ्यास) विषयाभ्यास है
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy