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________________ .२८ . धर्म मात्र मंगल है। प्रात्मज्ञान सभी धर्मों का फल है। अत. श्री अरिहतादि के नमस्कार द्वारा होता यात्मज्ञान सभी - मगलो मे प्रधान मगल है एव नित्य वर्द्ध मान मंगल है। नम्रता एवं वहुमान जीव कर्म से बंधा हुआ है यह विचार जिस प्रकार नम्रता को लाता है वैसे ही कर्म से मुक्त हुए पुरुषो के प्रति आन्तरिक वहुमान भी नम्रता को लाता है। कर्म का विचार पाप का प्रायश्चित करवाता है एव धर्म का विचार पुण्य का बीज बनता है। ___ नमो' मन्त्र में कर्म का अनादर है एवं धर्म का प्रादर है, दूसरो का अपकार करने से जो कर्म का बंध हुआ है उसका स्वीकरण है एवं परोपकार से जो धर्म की प्राप्ति होती है उसका भी श्रद्वापूर्वक स्वीकरण है। ___अपने को धर्म प्रदान करने वाले दूसरे हैं। अत उन उपकारियो के लिए नमस्कार जिस प्रकार धर्मवृद्धि का कारण है वैसे ही दूसरो के प्रति किया जाने वाला उपकार भी धर्म की वृद्धि करता है । धर्म को प्राप्त करने एव उसके सम्पादन के लिए भी परोपकार श्रावश्यक है। नमस्कार एक ओर तो अपराध को क्षमा करवाने के लिए आवश्यक है तो दूसरी ओर उपकार को स्वीकार करवाने के लिए भी आवश्यक है। नमस्कार द्वारा उपकार का स्वीकरण एवं अपराध की क्षमापना दोनो एक ही साथ सम्भव होती हैं। अधर्म से छटने के लिए एव पुन. अधर्माचरण नही करने हेतु नमस्कार आवश्यक है। श्री नमस्कार मत्र सभी पापो का प्रणाशंक एव सर्व मगलो का मूल कहा जाता है। उसका कारण है वह पाप के प्रायश्चित्त की बुद्धि से निष्पाप पुरुषों के लिए नमन क्रिया रूप है।
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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