SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 223 पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यतित्व एवं कृतित्व "अबालस्पर्शका नारी काहाणस्तृणहिं सकः। वने काष्ठमुखः पक्षी पुरे पसरजीवकः॥" इति - रत्नक. पा. 3/18 टीका तथा - "अह उड्डतिरियलोए दिसि विदिसं जपमाणियं भणियं। करणाणि तु सिद्धं दीवसमुद्दा जिग्गेहा॥" - रत्नक. श्रा. 2/2 टीका तदुक्तं "आकप्पिय अणुमाणिय बं दिह्र बादरं च सहुमं च। छन्नं सद्दाठलयं बहुजणमव्वत्त तस्सेवी॥" इति - रत्नक. श्रा. 5/4 टीका "कृषि पशुपाल्यं वाणिज्यं च वार्ता" इत्यभिधानात्। - रत्नक. श्रा. 3/33 टीका (नीतिवाक्यामृतम् वार्ता समुददेश सूत्र।) यह अवतरण सोमदेवकृत नीतिवाक्यामृतम् ग्रंथ के 'वार्तासमुददेश" का प्रथम सूत्र है। नीतिवाक्यामृत में पशुपाल्यं के स्थान पर "पशुपालनं" यह पाठान्तर है और यही ठीक प्रतीत होता है। साथ ही वाणिज्यं के स्थान पर 'वाणिज्या' यह पाठान्तर है, और वह भी ठीक जान पड़ता है। "क्षुधातमा नास्ति शरीरवेदना" इत्यभिधानात् । -- रत्नक.पा. 1/6 टीका "क्षेत्रं वास्तु धनं धान्यं द्विवपदं च चतुष्पदम्। शयनासनं च यानं कुप्यं भाण्डमिति दशा" - रत्नक. प्रा. 5/24 टीका
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy