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________________ पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व 199 लेखनी द्वारा समाज का स्थितिकरण करने उनको जिनवाणी के यथार्थ स्वरूप का बोध कराकर विकृतियों से पराङ्मुख किया। स्व. पण्डित जुगलकिशोर मुख्तार उन विभूतियों में से एक हैं जिन्होंने साहस एवं निर्भीकता से अपनी प्रौढ़ परिमार्जित लेखनी द्वारा जैन पत्रों में अनेक लेख लिखकर समाज को जैन साहित्य में प्राप्त विसंगतियों से बचने के लिए आगाह किया। ऐसी ही श्रृंखला में उन्होंने सूर्य प्रकाश-परीक्षा के सन्दर्भ में भी अनेक तथ्यों को उद्घाटित कर समाज को सावधान किया। जैन समाज में ग्रंथों की परीक्षा के मार्ग को स्पष्ट एवं प्रशस्त बनाने वाले पं. जुगल किशोर मुख्तार की लेखमाला "जैन जगत् " में 16 दिसम्बर सन् 1931 के अंक से प्रारंभ होकर जनवरी 1933 तक के अंकों में दस लेखों द्वारा प्रगट हुई थी। उसको ही पुनः संशोधित करके समाज उपकार की दृष्टि से एक पुस्तक का प्रकाशन जनवरी 1934 में किया गया, जो सूर्य प्रकाश-परीक्षा ( ग्रन्थ परीक्षा चतुर्थ भाग 1 ) के नाम से प्रसिद्ध है। आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" के साहित्यिक जीवन का प्रारंभ ग्रन्थ परीक्षा और सामीक्षा से ही आरंभ होता है। वे ग्रंथ के वर्ण्य विषय के अन्तस्तल में प्रविष्ट होकर उसके मूल स्रोतों का चयन करते हैं, पश्चात् उसका परीक्षण करते हैं और इसके बाद उनकी प्रामाणिकता का निर्धारण करते हैं। डा. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य ने लिखा है " आचार्य जुगलकिशोर की ग्रंथ परीक्षाएं में समीक्षा शास्त्र की दृष्टि से शास्त्रीय मानी जायेगी । यों इनमें ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, निर्णयात्मक एवं तात्विक समीक्षा के रूपों का भी मिश्रण पाया जाता है। ग्रंथ परीक्षा के अन्तर्गत जितने ग्रन्थों की प्रामाणिकता पर विचार किया गया है वे सभी ग्रंथ समीक्षा के अन्तर्गत आते हैं। ग्रंथ परीक्षा के दो भागों का प्रकाशन सन् 1917 ई. में हुआ था। ये दोनों तो भाग परम्परागत संस्कारों पर कशाघात थे। भट्टारकों के द्वारा की गयी विकृतियों के मूर्तिमान विश्लेषण थे। यही कारण है कि नाथूराम प्रेमी ने प्राक्कथन में लिखा है " आपके इन लेखों ने जैन समाज को एक नवीन युग का सन्देश सुनाया है और अन्ध श्रद्धा के अंधेरे में निद्रित पड़े हुए लोगों को चकाचौंध देने वाले प्रकाश से जागृत कर दिया है। यद्यपि बाह्य दृष्टि से अभी तक इन लेखों का कोई स्थूल प्रवाह व्यक्त नहीं हुआ है तो भी विद्वानों के
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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