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________________ सूर्य प्रकाश-परीक्षा : एक अनुशीलन ___डॉ. अशोक कुमार जैन, लाडनूं बीसवीं शताब्दी के सारस्वत मनीषियों में पं जुगलकिशोर मुख्तार का नाम अग्रगण्य है। उन्होंने जैन साहित्य की सुरक्षा, संवर्धन, प्रचार एवं प्रसार में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारतीय साहित्य में जैन साहित्य का विशेष स्थान है। उसके सृजन का मूल आधार वीतराग सर्वज्ञ की वाणी रहा है। आचार्य समन्तभद्र ने शास्त्र का लक्षण करते हुए लिखा है - आसोपज्ञमनुल्लध्य मदृष्टेष्ट विरोधकम्। तत्वोपर्दशकृत्सा शास्त्र का पथ घट्टनम् ॥ रत्नकरण्ड श्रावकाचार शास्त्र सर्वप्रथम आप्त भगवान के द्वारा उपज्ञात है। आप्त के द्वारा कहे जाने के कारण इन्द्रादिक देव उसका उल्लंघन नहीं करते, प्रत्यक्ष तथा अनुमानादि के विरोध से रहित है, तत्वों का उपदेश करने वाला है, सबका हितकारी है और मिथ्यामार्ग का निराकरण करने वाला है। आचार्य वीरसेन स्वामी ने लिखा है 'वक्तृ प्रामाण्याद्वचन प्रामाण्यम्' अर्थात् वचन को प्रामाणिकता वक्ता की प्रामाणिकता पर निर्भर रहती है। आप्त पुरूषों द्वारा प्रणीत शास्त्र तो सच्चे शास्त्र हैं और उसी के श्रद्धान से सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है। भगवान् महावीर ने सर्व प्राणि समभाव पर विशेष बल दिया और उसमें समत्व की प्रतिष्ठापना हेतु स्याद्वादमयी वाणी के प्रयोग पर बल दिया, परन्तु काल की गति के साथ जैन धर्म के अनुयायियों में भी शिथिलताओं की प्रवृत्तियां वृद्धिंगत हुई। परिणामतः जैनधर्म के वीतराग प्रशास्त मार्ग में शिथिल मान्यताओं के पोषक लोगों ने ऐसे ग्रन्थों का सृजन कर दिया, जिसमें चमत्कारों तथा सरागता को प्रमुखता दी गयी, जिससे भोले-भाले श्रावक दिग्भ्रमित हुए। श्रीवकों की डगमगाती स्थिति देख समय-समय पर जैन मनीषियों ने अपनी
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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