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________________ धर्म-लक्षण .. कारिका ३] 'पाप' शब्दका प्रयोग भी किया गया है और पापको 'किल्विष' नामके द्वारा भी उल्लेखित किया है; जैसा कि कारिका नं० २७, २६, ४६. १४८ आदिसे स्पष्ट ध्वनित है। और इन्हें जब ‘भवपद्धति' बतलाकर संसारके मार्ग-संसारपरिभ्रणके कारण अथवा सांसारिक दुःखोंके हेतुभूत--निर्दिष्ट किया गया है तब यह स्पष्ट है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र ये तीनों मिले हुए ही 'मोक्षपद्धति' अर्थात् मोक्षका एक मार्ग हैं-संसारदुःखोंसे छूटकर उत्तम सुखको पानेके उपायस्वरूप हैं; क्योंकि 'मोक्ष' 'भव का विपरीत (प्रत्यनीक ) है, और यह बात स्वयं प्रन्थकारमहोदयने ग्रन्थकी 'अशरणमशुभमनित्यं' इत्यादि कारिका (१०४) में भवका स्वरूप बतलाते हुए 'मोक्षस्तद्विपरीतात्मा' इन शब्दोंके द्वारा व्यक्त की है। इसीसे तत्त्वार्थसूत्रकी आदिमें श्रीउमास्वाति (गृध्रपिच्छाचार्य) ने भी कहा है सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः ॥१॥ - और यही बात श्रीप्रभाचन्द्राचार्यने अपने तत्त्वार्थसूत्रमें 'सदृष्टिज्ञानवृत्तात्मा मोक्षमार्गः सनातनः' तथा 'सम्यग्दर्शनावगमसदृष्टिज्ञानवृत्तमाल तथा वृत्तानि माक्षहेतुः' इन मंगल तथा सूत्रवाक्योंक द्वारा प्रतिपादित की है। इसी रत्नत्रयरूप धर्मको स्वामी समन्तभद्रने प्रस्तुत ग्रन्थ में मोक्षमार्ग' के अतिरिक्त 'सन्मार्ग' तथा 'शुद्धमार्ग' भी लिखा है; और शुद्धसुखात्मक मोक्षको शिव, निर्वाण तथा निःश्रेयस नाम देकर 'शिवमार्ग' 'निर्वाणमार्ग' 'निःश्रेयसमार्ग' भी इसीके नामान्तर हैं ऐसा सूचित किया है। । साथ ही 'ब्रह्मपथ' भी इसीका नाम है ऐसा स्वामीजीके युक्त्यनुशासनकी ४थी कारिकामें प्रयुक्त हुए 'ब्रह्मपथस्य नेता' पदोंसे जाना जाता है, जो उमास्वातिके 'मोक्षमार्गस्य नेतारं' पदोंका स्मरण कराते हैं। यही संक्षेपमें । देखो, कारिका ११, १५, ३१, ३३, ४१, १३१ ।
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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