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________________ प्राकथन स्वामी समतन्भद्र भारतवर्षके महान् नीतिशास्त्री और तत्त्वचिन्तक हुए हैं। जैन दार्शनिकोंमें तो उनका पद अति उच्च माना गया है । उनकी शैली सरल, संक्षिप्त और आत्मानुभवी मनीपी जैसी है। देवागम या आप्तमीमांसा और युक्त्यनुशासन उनके दार्शनिक ग्रन्थ हैं। किन्तु जीवन और आचारके सम्बन्धमें भी उन्होंने अपने रत्नकरण्ड-श्रावकाचारके रूपमें अद्भुत देन दी है। इस ग्रन्थमें केवल १५० श्लोक हैं। मूलरूपमें इनकी संख्या यदि कम थी तो कितनी कम थी इस विषय पर ग्रन्थ के वर्तमान सम्पादक श्रीजुगलकिशोरजी ने विस्तृत विचार किया है। उनके मतसे केवल सात कारिकाएँ संदिग्ध हैं । सम्भव है भातृचेतके अध्यर्धशतककी शैली पर इस ग्रन्थकी भी श्लोकसंख्या रही हो । किन्तु इस प्रश्न का अन्तिम समाधान तो प्राचीन हस्तलिखित प्रतियोंका अनुसंधान करके उनके आधार पर सम्पादित प्रामाणिक संस्करणसे ही सम्यक्तया हो सकेगा जिसकी ओर विद्वान सम्पादकने भी संकेत किया है (पृ०८७)।। समन्तभद्रके जीवनके विपयमें विश्वसनीय तथ्य बहुत कम ज्ञात हैं। प्राचीन प्रशस्तियोंसे ज्ञात होता है कि वे उरगपुरके राजाके राजकुमार थे जिन्होंने गृहस्थाश्रमीका जीवन भी बिताया था। यह उरगपुर पाण्ड्य देशकी प्राचीन राजधानी जान पड़ती है, जिसका उल्लेख कालिदासने भी किया है ( रघुवंश, ६३५६, अथोरगाख्यस्य पुरस्य नाथं )। ६७४ ई० के गड्वल ताम्र शासनके अनुसार उरगपुर कावेरीके दक्षिण तट पर अवस्थित था (एपि० ई०, १०।१०२ )। श्री गोपालनने इसकी पहचान त्रिशिरापल्लीके
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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