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________________ विवाह-क्षेत्र प्रकाश। रीति-रिवाज कभी एकहालत में नहीं रहा करते, वे सर्वज्ञ भगवान की आज्ञा और अटल सिद्धांत नहीं होते, उनमें समयानुसार बराबर फेरफार और परिवर्तन की जरूरत हुआ करती है। इसी जरूरतने वसुदेवजीके समय और वर्तमान समयमें जमीन आसमानका सा अन्तर डाल दिया है। यदि ऐसा न होता तो वसदेव जीके समयके विवाहसम्बंधी नियम-उपनियम इस समय भी स्थिर रहते और उसी उत्तम तथा पूज्य दृष्टिसे देखे जाते जैसे कि वे उससमय देखे जातेथे। परन्तु ऐसा नहीं है और इसलिये कहना होगा कि वे सर्वज्ञ भगवान् की प्राज्ञाएँ अथवा अटल सिद्धान्त नहीं थे और न हो सकते हैं। दूसरे शब्दों में यों कहना चाहिये कि यदि वर्तमान वैवाहिकरीतिरिवाजोंको सर्वज्ञ प्रणीतसार्वदेशिक और सार्वकालिक अटल सिद्धान्त--माना जाय तो यह कहना पड़गा किवसदेवजीने प्रतिकूल आचरणद्वारा बहुत स्पष्टरूपमे सर्वशकी आशाका उल्लङ्घन किया है । ऐसी हालत में प्राचार्यों द्वारा उनका यशोगान नहीं होना चाहिये था, वे पातको समझ जाकर कलङ्कित किये जाने के योग्य थे। परन्तु ऐसा नहीं हुआ और न होना चाहिये था, क्योंकि शास्त्रों द्वारा उस समयके मनज्यों को प्रायः ऐसी ही प्रवृत्ति पाई जाती है, जिससे वसुदेवजी पर कोई कलङ्क नहीं प्रासकता । तब क्या यह कहना होगा कि उस वक्तके वे रीति-रिवाज सर्वक्षप्रणीत थे और आज कल के सर्वज्ञप्रणीत अथवा जिनभाषित नहीं है ? ऐसा कहने पर आज कल के रोति-रिवाजोंको एकदम उठाकर उनके स्थानमें वही वसुदेव जी के समय के रीति-रिवाज कायम कर देना ही समुचित न होगा बल्कि साथ ही अपने उन सभी पूर्वजोको कलङ्कित और दोपी भी ठहराना होगा जिनके कारण वे पुराने ( सर्वक्षभाषित ) रीति-रिवाज उठकर उनके स्थान में वर्तमान रीति-रिवाज कायम हुए और फिर हम तक पहुँचे। परन्तु ऐसा
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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