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________________ गृहस्थ सामान्य धर्म : २७ चित्तको स्वस्थता व शांति मिलती है। स्त्री कुलीन होनेसे उसे घरकी चिंता नहीं होती । वहारसे उद्वेग युक्त आने पर स्त्रीकी प्रसन्न मुद्रासे स्वय भी सुखी व प्रसन्न हो जाता है। उससे गृहकार्यमें सुंदरता आती है, आचारशुद्धि होती है और स्वजन संबन्धी देव, गुरु व अतिथिका आदर सत्कार भली प्रकार हो सकता है। . कूलवघूके रक्षणके उपाय इस प्रकार है-उसे हमेशा गृहकार्यमे लगाये रखना, कुछ थोडा धनका योग उसके पास रक्खे, स्वतंत्रता देना नहीं और हमेशां मातातुल्य स्त्रियों के साथ रहे ऐसा प्रबन्ध करें । गृहकार्यसे अन्य प्रवृत्ति कम होगी। द्रव्यकी अधिक छूट देना ठीक नहीं पर आवश्यकताके लिये कुछ धन तो उसे देना ही चाहिए। हर अवस्थामें पुरुष या पतिद्वारा रक्षित रहनी चाहिए। मातातुल्य नियोके साथ रहनेसे दुर्गुण रुकेगे व सद्गुणों के खिलनेका अवसर प्राप्त होगा। विवाहू संबन्ध न करके वेश्या आदिसे संबन्ध रखनेमें क्या हानि है ? उत्तरमे कहते है वेश्या धोबीकी शिला तथा कुत्तेके चाटनेके वर्तन समान है, अर्थात् हर कोई उसमे मुइ मारता है। ऐसी बुरी वस्तुसे कौन कुलीन प्रसन्न होगा ? उसको दान देनेसे दुर्भाग्य या दरिद्रता आती है, उसके सत्कारसे वह अन्यके उपयोगकी वस्तु-बनती है; उसमे आसक्तिसे पराभव (या लोकनिन्दा) तथा मरण भी हो सकता है, बहुत समयका सबन्ध व प्रेम होने पर भी छोडते ही वह अन्यसे सहवास कर लेती है । वेश्याओंका यही परंपरागत रिवाज हैं।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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