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________________ २६ : धर्मविन्दु । १. नाम- जहां कन्याको वस्त्राभूषणोसे अलंकृत करके 'तुम इस महाभाग्यशालीकी सहधर्मिणी बनो' कह कर वरको सौंप दी जावे उस ब्राह्मविवाह कहते हैं। २. प्राजापत्य- पिता अपने घरके अनुकूल द्रव्यादि देकर कन्याका विवाह करे वह । ३. आप- जिस विवाहमे केवल गायोकी जोडी ही दी जावे। ४. दैवविवाह- जिसमे यज्ञके लिये ऋत्विज ब्राह्मणको दक्षिणामें कन्यादान दिया जावे वह । उपरोक्त चारो प्रकारके धर्मविवाह कहलाते है। इसमें गृहस्थके योग्य देवपूजा तथा अन्य व्यवहार आदि सहित माता पिता व बन्धुजनकी सम्मतिसे संबन्ध होता है। ५. गान्धर्व- पारस्परिक प्रीतिसे जो विवाह संबन्ध हो। ६. आसुर- जो किसी शर्त पर किया जावे । ७. राक्षस- वलात्कारसे पाणिग्रहण करना । ८. पैशाच- सोते हुए या अज्ञान अवस्थामें हरण करके विवाह हो या कन्यादान हो । . ये चारो अधर्म विवाह है पर यदि वर-वधूमें किसी भी अपवाद बिना प्रीति हो तो वह अधर्म नहीं है। । विवाहका फल बताते है-विवाहसे कुलीन स्त्रीकी प्राप्ति होती है । उससे सुजात पुत्र, कन्या आदिकी प्राप्ति संभव है।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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