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________________ गृहस्थ सामान्य धर्म : १९ न्याय ही धन प्राप्ति करनेका उत्तम रहस्यमून उपाय है। जो मन्दबुद्धि पुरुष योग्य व अयोग्य द्रव्यमें भेद नहीं कर सकते वे इस तरीके को स्वप्नमें भी नहीं पा सकते । बुद्धिमान .लोग न्याय मार्गको उत्तम कमानेका मार्ग समझते है। न्याययुक्त व्यवहारसे न्याय होनेसे शुभ कर्म ही होता है। अन्याययुक्त व्यवहारसे अशुभ कर्म । शुभ कर्मसे धन स्वत आ जाता है। न्याय आचरणसे ही धन प्राप्तिके लिये व्यक्ति योग्य होना है। लोभ रहित न्यायी मनुष्योको लक्ष्मी अपने आप मिलती है। कहा है कि. "निपानमिव मण्डूका, सरः पूर्णमिवाण्डजाः । शुभकर्माणमायान्ति, विवशः सर्वसंपदः ॥५॥ तथा-नोदवानर्थितामेति, न चाम्भोभिन पूर्यते । आत्मा तु पात्रतां नेयः, पात्रमायान्ति संपदः" ॥६॥ -जैसे मेंढक कूएके प्रति और पक्षी सरोवरकी तरफ स्वतः आते हैं वैसे ही शुभ कर्मवाले पुरुकी पास लक्ष्मी व सर्व संपदायें पराधीनकी तरह दौडो आती हैं ॥५॥ - -समुद्र यद्यपि जलके लिये भिक्षा नहीं मांगता, तब भी वह जलसे अपूर्ण रहे ऐसा नहीं होता (याने भरा ही रहता है ) अतः आत्माको पात्र बनाना चाहिए जिससे संपदाएँ आकर्षित होकर आती हैं ॥ ६॥ .. - - - । .. संपत्ति पैदा करने को उपाय न्याय ही है, यह कैसे - कहते हैंततो हि नियमतः प्रतिवन्धककर्मविगम इति ॥९॥
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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