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________________ गए। यतिधर्म विशेष देशना विधि : ३८५ब्रह्मचर्य अंगीकार करे तब केवल आतध्यान ही होता है। अतः उचित समय पर उचित कार्य करना ही अच्छा है अन्यथा योग्य समय न होने पर भी उत्सुक होकर कोई काम किया जावे तो मार्तध्यान होता है। उत्सुकता रहित पुरुष प्रवृत्तिकाल कैसे पाप्त कर सकता है ? कहते हैं. नेदं प्रवृत्तिकालसाधनमिति ॥५६॥ (४२३). मूलाथ-उत्सुकता प्रवृत्तिकालका साधन नहीं है ॥५६॥ विवेचन-इदम्- औत्सुक्य-उत्सुकता, प्रवृत्तिकाल-कार्यमें प्रवृत्ति करनेका समय, साधनम्-हेतु। ' मनुष्य कोई काम करनेको उत्सुक हो उस परसे प्रवृत्तिका समय मिले, ऐसा नहीं होता। यदि प्रवृत्ति करनेका अवसर न हो तो उत्सुकत्तासे कुछ नहीं होता । धर्मसाधनका जो अवसर है उसके सिवाय धर्मसाधनकी कोई प्रवृत्ति करे तो वह निष्फल जाती है । जैसे बहुत भूखा मनुष्य भी समय या अवसर विना भोजन प्राप्त नहीं कर सकता । अतः उत्सुकता समय प्राप्त करनेका साधन नहीं है। इसका सार क्या है या क्या करना चाहिये ? कहते हैं- इति सदोचितमिति ॥५७।। (४२४). " मूलार्थ--अतः निरंतर उचित कार्य करे ॥२७॥ विवेचन--उत्सुकताका त्याग करके जो उचित हो वही कार्य हमेशा है ऐसा सोचकर कार्य करे।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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