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________________ यति सामान्य देशना विधि : २८९ मूलार्थ-पृथ्वीकाय आदिका रक्षण करे ऐसा उपाय बतावे ॥३६॥ विवेचन-उपायता-निर्दोष अनुष्ठानके अभ्यासरूप उपायसे, कायानां-पृथ्वीकाय आदिका, पालनं-रक्षा करे । दीक्षा लेनेवाला पुरुष पृथ्वीकाय आदिका रक्षण कर सके उस प्रकार निर्दोष अनुष्ठानका अभ्यास करे। तथा-भववृद्धिकरणमिति ॥३७॥ (२६३) मूलार्थ-दीक्षा लेनेके भावकी वृद्धि करे॥३७॥ विवेचन-भाववृद्धि-दीक्षा लेनेके अभिलाषकी वृद्धि-बढती करे, करणं-संपादन करना। दीक्षा लेनेका फल बताना आदि वचनोद्वारा दीक्षा लेनेकी अभिलाषाकी वृद्धि करे । फलको बतानेसे भावमें वृद्धि होती है। तथा-अनन्तरानुष्टानोपदेश इति ॥३८॥ (२६४) मूलार्थ-बादमें करने योग्य अनुष्ठानका उपदेश करे ॥३८॥ विवेचन-अनन्तरानुष्ठान-दीक्षा ग्रहण करनेके वाद करनेका आचरण । दीक्षा लेनेके बाद शिष्य क्या आचरण करे। उसका गुरुके प्रति क्या कर्तव्य है, किस प्रकार व्यवहार करना, धर्म क्रिया, गुरुकी भक्ति बहुमानादि करना, इस दीक्षाके बाद करनेके अनुष्ठानका बोध व उपदेश करे । ऐसा करनेसे यदि मन डिग जाय तो ऐसा समझें कि उसे असली वैराग्य जागृत नहीं हुआ। .... ૧૯,
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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