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________________ ९८८ : धर्मविन्दु विवेचन- निमित्तानां भावी कार्यसूचक शकुन आदिसे, परीक्षा - निश्चय करना | भावी अर्थकी सूचना करनेवाले शकुन आदि द्वारा शिष्यकी परीक्षा करे । निमित्तशुद्धिकी आवश्यकता है। वह प्रधान विधि है । तथा - उचितकालापेक्षणमिति ||३५|| (२६१) 'मूलार्थ - दीक्षा देनेके योग्य कालकी अपेक्षा रक्खे ||३५|| विवेचन - उचितकाल - दीक्षा देनेके योग्य समय, तिथि, नक्षत्र आदिका उत्तम योग देखे । गणितविद्या के प्रकीर्णक ग्रन्थमे निर्देश किये अनुसार मुर्हत देखे । उसमें कहा है--- " तिहि उत्तरादि वह रोहिणीहिं कुजा उ सेहनिक्खमणं । गणिवायर अणुना, महव्ययाणं च आरुहणा ॥ १५०॥ " चउदसी पन्नरसिं वज्जेजा अहमि च नवमिं च । छ िच चथि चारसिं च दोन्हं पि पक्खाणं ॥ १५९ ॥ ॥” - तीन उत्तरा नक्षत्र, उत्तराषाढा, उत्तरा भाद्रपद, उत्तरा फाल्गुनी तथा रोहिणी नक्षत्र - इन चार नक्षत्रोंमे शिष्यको दीक्षा देना । गणिपद या वाचकपद तथा महाव्रतकी आसेपणा भी इन्हीं नक्षत्रों में करना चाहिये 1. चतुर्दशी, पूर्णिमा, अष्टमी, नवमी, षष्ठी, चतुर्थी व द्वादगी (चउदस, पूर्णिमा, बारस आदि) इन तिथियों को दोनों पक्षमें छोडकर अन्य तिथियोंमें देना चाहिये || तथा - उपायतः कार्यपालनमिति ||३६|| (२६२) W
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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