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________________ ( ९८) सावगधम्मसमास ( श्रावकधर्मसमास ) - इसमें श्रावकोंके कर्तव्यका स्वरूप समझाया गया है। (९९) सासयजिणकित्तण | (१००) स्याद्वादकुचोद्य परिहार - इसमें स्याद्वाद पर किये गये आक्षेपका खंडन है | (१०१) हिंसकाष्टकावचूरि- यह 'हिंसाएक ' की छोटी टीका है। आ० हरिभद्रसूरिजीका समयः अब हम उनके समयके विषयमें जो जो मत प्रवर्तित है उस पर दृष्टि डाल दें और उसमें क्या तथ्य है उसका विचार करें। I आ० हरिभद्रसूरिजी के समय के विषयमें विद्वानोंमें काफी ऊहापोह हो चुका है । उसमें खास दो मत उल्लेख्य है । एक मतके मुताबिक उनका स्वर्गगमनकाल वि. सं ५८५ बताया जाता है, जिसके प्रमाण इस तरह देते हैं १. ' पट्टावली ' ग्रन्थों में यह गाथा मिलती है. - " पंचसए पणसीए, विकमकालाभ झत्ति अर्थामिओ । हरिभद्दसूरितूरो, भवियाणं दिसउ कल्लाणं ॥ 13 -- वि. सं ५८५ में हरिभद्रसूरि स्वर्गस्थ हुए। वे भव्य मनुप्योंका कल्याण करो । २ आ० धर्मघोषसूरि 'दुस्समकालसमणसंघथयं' की अव चूरिमें लिखते है --
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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