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________________ "सत्यमित्र ७ हारिल ५४॥ पचसए पणसीए (गाथा)॥ जिनभद्रगणिः ६०॥" -आ० सत्यमित्र ७ वर्ष, आ० हारिल ५४ वर्ष युगप्रधान रहे, वि. सं. ५८५ में आ० हरिभद्रसूरिजीका स्वर्ग, आ० जिनभद्रगणि ६० वर्ष युगप्रधान। ३ आ० मेरुतुंगसूरि अपनी विचारश्रेणि ' में लिखते हैं"श्रीवीरमोक्षाद् दशभिः शतैः पञ्चपञ्चाशदधिकैः (१०५५) श्रीहरिभद्रसूरेः स्वर्गः। उक्तं च, पचसए पणसीए (गाथा)॥ ततो जिनभद्रक्षमाश्रमणः ६५॥" --वीर संवत् १०५५-वि सं ५.५ में आ० हरिभद्रसरिजीका स्वर्ग, उसके बाद आ० जिनभद्र क्षमाश्रमण हुए। उनका युगप्रधानत्व ६५ वर्ष । ४. आ० प्रभाचन्द्रसूरि 'प्रभावकचरित' में लिखते हैं-- आचार्य हरिभद्रसूरिजीने ' महानिशीथसूत्र का जीर्णोद्धार किया और आ० जिनप्रभसूरि विविधतीर्थकल्प ' में लिखते हैं कि- आ० जिनभद्र क्षमाक्षमणने मथुरामें 'महानिशीथसूत्र'का उद्धार किया। इससे स्पष्ट हो जाता है कि ये दोनों आचार्य समकालीन हैं। ५ आ० प्रद्युम्नसूरि 'विचारसार' में कितनीक गाथाओंका अवतरण देते हैं "पचसए पणतीए, विकमभूवामो झत्ति अत्थमिओ। हरिभद्दसूरिसूरो, धम्मरओ देउ मुक्खसुहं ॥ अहवा- पणवन्न दससपहि, हरिसूरी आसी तत्थ पुब्धकई। तेरसबरिसलपहि, अईपहि वप्पहट्टि पह॥" --एक उल्लेख ऐसा है कि वि. स ५३५ में धर्मरत आ०
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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