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________________ ૨૨ (६१) मुनिवइचरिय- इसमें मुनिपतिका चरित्र है। (६२) यतिदिनकृत्य। (६३) यशोधरचरित- इसमें यशोधरका वृत्तांत होगा। (६४) योगदृष्टिसमुच्चय-इसमें इच्छायोग, शास्त्रयोग और सामर्थ्य योगका निरूपण है। (६५) योगदृष्टिसमुच्चय-वृत्ति- यह अपने रचे हुए 'योगदृष्टि समुच्चय 'की वृत्ति है। (६६) योगविन्दु ( विरहांकित )- इसमें अध्यात्मका विषय है। (६७) योगशतक- 'चतुर्विंशति प्रबन्ध 'मे इसका नाम मिलता है। (६८) लग्गकुंडलिया (लमकुंडलिका) याने लग्नशुद्धि- यह ज्योतिष विषयक ग्रन्थ है। (६९) लघुक्षेत्रसमास-वृत्ति- यह 'लघुक्षेत्रसमास की टीका होगी। (७०) ललितविस्तरा याने चैत्यवन्दनस्तववृत्ति (विरहांकित) यह चैत्यवन्दन सूत्रकी वृत्ति है। इसमें अनेक अजैन मतोंका खंडन है। (७१) लोकतत्वनिर्णय याने नृतत्त्वनिगम- इसमे विष्णु आदि वैदिक देवोंके दुष्कृत्योकी नोंध है और लोरका स्वरूप समझाया गया है। (७२) लोकविन्दु ।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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