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________________ (४७) पंचलिंगी। (४८) पंचवत्युग (पंचवस्तुक)- इसमें दीक्षा, साधुओंका दैनिक . आचार, गच्छावास आदि बातोंका निरूपण है। (४९) पंचवस्तुक-टीका (विरहाकित )- यह 'पंचवथुग' की टोका है। (५०) पंचमत्र-व्याख्या- यह 'पंचसुत्त' नामक प्राचीन प्राकृत ग्रन्थकी टीका है। (५१) पंचस्थानक । (५२) पंचासग(पंचाशक) (विरहांकित )- इसमें श्रावकधर्म, दीक्षा, चन्यवन्दन, पूजा आदि विविध वातोंका निरूपण है। (५३) परलोकसिद्धि- श्रीमुमतिगणिने इसका उल्लेख किया है। (५४) पिण्डनियुक्ति वृत्ति- यह ' पिंडनिजृत्ति 'की टीका है। (५५) प्रज्ञापनासूत्रप्रदेश-व्याख्या- यह ‘पण्णवणा' सूत्रकी टीका है। (५६) प्रतिष्ठाकल्प । (५७) वृहन्मिथ्यात्वमथन- इसको सुमतिगणिने गिनाया है। (५८) वोटिकप्रतिषेध- इसमें दिगंवर मतका खडन है। (५९) भावनासिद्धि- इसमें भावना या वैराग्यका अधिकार होगा। (६०) भावार्थमात्रावेदिनी- यह अपने रचे हुए 'अनेकान्त जयपताका की टीका है।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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