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________________ २० (३५) धर्म बिन्दु ( विरहांकित ) - इसमें गृहस्थ- श्रावक और साधुओकी धर्मविधि बताई हुई है - यह प्रस्तुत पुस्तक । (३६) धर्मलाभ सिद्धि - श्री सुमतिगणिने इसकी नोध की है । ( ३७ ) धर्मसार - पुरुषार्थ पर प्रकाश देनेवाली यह पुस्तक पर श्रीमलयगिरि आचार्यने टीका रची है। (३८) धुत्त खाण ( धूर्ताख्यान ) - वैदिक देवोंका और मंतव्यो का इसमें विनोदपूर्ण उपहास किया है । (३९) ध्यानशतक - वृत्ति - यह आवश्यकसूत्र विवृतिका भाग है | (४०) नन्दी सूत्र टीका याने नन्द्यध्ययनटीका - यह 'नन्दी ' नामक आगमकी टीका है । ( ४१ ) नाणपंचगवरखाण ( ज्ञानपंचकव्याख्यान ) - इसमें पांच ज्ञानका अधिकार है। (४२) नाणायत - ( ज्ञानादित्य प्रकरण ) ' चतुर्विंगततिप्रबन्ध' में इसका नाम गिनाया है। (४३) नाणाचित्तपयरण ( नानाचित्रप्रकरण ) - इसमे धर्मका स्वरूप बताया गया है । (४४) न्यायप्रवेशक व्याख्या याने शिष्यहिता - यह न्याय प्रवेशक नामक बौद्ध ग्रन्थकी टीका है। (४५) न्यायावतारवृत्ति । (४६) पंचनियंठी ।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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