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________________ गृहस्थ विशेष देशना विधि : १९५ रेकी रखेली स्त्री और वेश्याके साथ संभोग, अनंगक्रीडा तथा तीव्र काम अभिलाषा - ये पांच अतिचार हैं | ||२६| विवेचन - परविवाहकरण - परेषां विवाहकरणम् - अपने पुत्र पुत्रीको छोड़कर अन्य जनोकी संततिका विवाह कराना । कन्या - दानके फलकी इच्छासे अथवा स्नेहसंबंध से दूसरे लोगोंका विवाह कराना अतिचार है । इसमें भी अपने संतानका लम करनेमें भी संख्याका नियम रखना न्याय्य है । I जो किसी प्रकारसे पैसे देकर कुछ समय के लिये भोगी जाय वह इवरी स्त्री रखेली या वेश्या है । ऐसी स्त्रीके साथ कामभोग भी अतिचार हैं । किसी एकने खास कर न रखी हो ऐसी वेश्या तथा कोई कुलीन या अनाथ स्त्री हो ऐसी सब स्त्रियां या इनमेंसे किसी एकके साथ कामभोग करना इत्वरपरिग्रहीता - अपरिगृहीतागमन नामक दो अतिचार होते हैं । अनंग-अंगका अर्थ यहां देहके मैथुनका अवयव अर्थात् लिंग या योनि, इनको छोड़ कर अन्य अंग-कुच, कक्ष, उरू, वदन आदि सब अनंग हैं। इनसे क्रीडा करना या खेलना अनंगक्रीडा है। अनंगका दूसरा अर्थ काम है । कामक्रीडा या कामद्वारा क्रीडा भी अनंगक्रीडा है । अथवा तो कामांगके बिना ही अन्य किसी प्रकारसे कामभोग करना भी अनंगक्रीडा है । अथवा तो पशुमैथुन और गुदामैथुन भी अनंगक्रीडामें आते हैं। तीव्रकामाभिलाषा- कामभोग या मैथुन तथा शब्द और
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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