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________________ गृहस्थ देशना विधि : ९७ गुणीमें थोडा भेद है । जो भेद न हो तो गुणका नाश होने पर गुणीका भी नाश होता हैं । परिणाम शून्य आता है । अतः उपर्युक्त क्रमसे गुणी व गुणका आश्रय लेकर अलग कहे हैं । 1 ३. चारित्राचार - चारित्रके पालन सबधी साधुके आचारको चारित्राचार कहते हैं । यह आठ प्रकारका है। इसमें पांच समिति द तीन गुप्ति होती है। नीचे समिति व गुप्तिका स्वरूप संक्षिप्त व्याख्या -- अन्यत्रसे उद्धृत करके दिया है १. इर्यासमिति - रास्ते में आते जाते किसी जीवकी विराधना या हिंसा न हो उस हेतुसे यत्न सहित तेज दृष्टि से देखते हुए चलनेको इर्यासमिति कहते हैं । २. भापासमिति - किसी भी जीवका द्रव्य या भाव प्राणका व या विराधना न हो उस प्रकार सत्य वचन बोल्नको भाषासमिति कहते है । ३. एपणासमिति - ४२ दोष रहित आहार आदिकी गवेषणा या शोध करना । ४. आदान निक्षेपण समिति बैठते-ऊठते, बेते व रखतेप्रत्येक समय पूजना व प्रमार्जना करनेका उपयोग रखना वह । ५. पारिष्ठापनिका समिति - मल-मूत्रादिकको परठवनेके समय शुद्ध भूमि देखनेका उपयोग रखना वह । ד गुप्ति तीन है-मन गुप्ति, वचन गुप्ति व काय गुप्ति - वे इस प्रकार जानना । ७
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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