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________________ गृहस्थ देशना विधि : ९१ है पर बहुमान नहीं । (२) दूसरे को बहुमान है पर विनय नहीं। (३) एकको विनय तथा बहुमान दोनों हैं । (४) चौथेको न विनय हैं न बहुमान । इसमें तीसरा उत्कृष्ट है। ४ उपधान ज्ञानाचार-शास्त्रका अभ्यास करनेवाले, श्रुत ग्रहण करनेकी इच्छावालेको उपधान करना चाहिये। जिस तपस्यासे ज्ञानको पुष्टि मिले उसे उपधान कहते हैं और उस तपके करनेको उपधान ज्ञानाचार कहते हैं। तपपूर्वक उपार्जित ज्ञान विशेष सफल होता है। तपसे शरीर व मन आत्माके अधीन होते हैं तभी आत्मा मन व शरीर को ज्ञान प्राप्तिमें लगाती है और ज्ञान शीघ्र प्राप्त होता है । इद्रिय व मन स्वाधीन व सयमी न होने पर ज्ञानाभ्यास इच्छित रूपमें नहीं होता । तपका अर्थ 'विचार कग्ना' भी होता है। अत शास्त्राभ्यासीको शास्त्र पर विचार करना चाहिये। उसे मनन करना आवश्यक है। आगाढ आदि योग युक्त जो तप जिस अध्ययनमें कहा हो वह तप उस अध्ययनमें करना चाहिये । तप पूर्वक शास्वाध्ययन सफल होता है। ५ अनिव ज्ञानाचार-जिस गुस्से शिक्षा ग्रहण की उसका नाम छिपाना निहव है । अत. उस नामको न छिपाना 'अनिहव' है । शास्त्र ग्रहण करनेवाला निहब न करे, जिसके पास अध्ययन किया हो उसीका नाम लेना अन्यका नहीं। यह असत्यका प्रकार है। इससे चित्तमें कलुषितता आती है। शास्त्रज्ञान भी सफल नहीं होता। ऐसा व्यक्ति कृतघ्न समझा जाता है । उसी गुरुका नाम लेनेसे उसकी प्रशंसा होती है, तभी ऋणमुक्त होगे ।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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