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________________ ९० : धर्मादिन्दु जिस आचारसे' ज्ञानावरणीय कर्मका स्वाभाविक ज्ञान प्रगटे हो उसे ज्ञानाचार आचार ज्ञानाचार है । क्षय हो और आत्माका कहते हैं । श्रुतलक्षणका १. ज्ञानाचार के आठ भेद हैं, वे ये है -१ काल, २ विनय, ३ बहुमान, ४ उपधान, ५ अनिह्नत्र, ६ व्यञ्जन, ७ अर्थ और - ८ तदुभय-ये आठ भेद हैं। इनके लक्षण कहते हैं 19 १ काल ज्ञानाचार - " जिस अंग सिद्धान्तमें श्रुत-आगमका जो काल अभ्यास कहा गया है उसका तभी स्वाध्याय करना ऐसे तीर्थंकर भगवानके वचनसे योग्य कालमें ही अभ्यास करना, अन्य समय पर नहीं करना ही काल ज्ञानाचार है । कृषिका फल भी योग्य समय पर खेती करनेसे ही मिलता है, असमय में निष्फल जाता है। २ विनय ज्ञानाचार - श्रुतको ग्रहण करते समय सुन कर हृदयगम करनेमें गुरुका विनय करना । गुरुके आने पर खडा होना, आसन बिछाना, गुरुचरणकी सेवा करना आदि विनय हैं । अविनयसे पठित विद्या भी चली जाती है । अतः ज्ञानके लिये विनय करे । ३ बहुमान ज्ञानाचार - शास्त्रका अभ्यास करनेवाला, श्रोता, शास्त्र ग्रहण करने को तत्पर पुरुष या विद्यार्थी गुरुका बहुमान करे । हृदयमें जाग्रत गुरुके प्रति श्रद्धा व पूज्यभावको ही बहुमान ज्ञानाचार कहते हैं । बहुमान आंतरिक है व विनय बाह्य | यहां विनय व बहुमानकी चतुर्भगी होती है- (१, एकको चिनय =
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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