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________________ गृहस्थ देशना विधि : ८९ जो शास्त्रमें आये हुए हैं, उनकी अनन्य भक्ति व अभ्यास करना धर्मप्राप्तिका साधन है। तथा-प्रयोग आक्षेपण्या इति ॥१०॥ (६८) मूलार्थ-श्रोताको मोहसे तत्वकी और आवर्जित करनेचाली कथा कहना। विवेचन- प्रयोग- कथा प्रसंग कहना, आक्षेपणी- जो आकर्षित तत्त्वकी ओर भव्य प्राणियोको मोहसे ले जावे । ___ धर्मकथा करते समय उनको मोहसे तत्त्वकी ओर खींचनेवाली आक्षेपणी कथा कहे। आक्षेपणीके चार भेद हैं-१ आचार, २ व्यवहार, ३ प्रज्ञप्ति तथा ४ दृष्टिवाद । इनके लक्षण इस प्रकार हैं-१ आचार-साधुकी लोच, अस्नान आदि क्रिया या आचारका वर्णन, २ व्यवहार प्राप्त दोषके निवारणके लिये प्रायश्चित करनेका वर्णन, ३ प्रज्ञप्ति-संशयमें पडे हुए को मधुर वचनसे ज्ञान वताना या संशय निवारण, १ दृष्टिवाद-श्रोताकी अपेक्षासे (जैसा वह हो, उसे पहिचान कर ) जीव, अजीव आदि तत्वोंका सूक्ष्म भावका कथन, इस प्रकारकी आक्षेपणी कहे । ' तथा-ज्ञानाद्याचारकथनमिति ॥११॥ (६९) । मूलार्थ-और ज्ञानादि आचारोंका वर्णन करे ॥. विवेचन-ज्ञानादि-आचार पांच प्रकारके हैं-ज्ञानाचार, दर्शन नाचार, चारित्राचार, तपाचार तथा वीर्याचार । कथनम्-उनका वर्णन !
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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