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________________ ६० स्वयम्भू स्तोत्र जयघोष करते हुए उनके सूक्तिसमुहको - सुन्दर प्रौढ युक्तियों को लिये हुए प्रवचनको - वादीरूपी हाथियोंको वशमें करनेके लिये 'वजांकुश' बतलाया है और साथ ही यह लिखा है कि 'उनके प्रभावसे यह सम्पूर्ण पृथ्वी एक वार दुर्वादुकों की वार्तासे भी विहीन होगई थी— उनकी कोई बात भी नहीं करता था ।' (१३) श्रवणबेलगोल के शिलालेख नं० १०८ में भद्रमूर्ति - समन्तभद्रको जिनशासनका प्रणेता ( प्रधान नेता ) बतलाते हुए यह भी प्रकट किया है कि 'उनके वचनरूपी वजके कठोरपातसे प्रतिवादीरूप पर्वत चूर चूर हो गये थे— कोई भी प्रतिवादी उनके सामने नहीं ठहरता था । ' (१४) तिरुमकूडलुनरसीपुरके शिलालेख नं० १०५ में समन्तभद्रके एक वादका उल्लेख करते हुए लिखा है कि 'जिन्होंने वारासी (बनारस) के राजाके सामने विद्वेषियोंको—अनेकान्तशासन से द्वेष रखनेवाले सर्वथा एकान्तवादियोंको-पराजित कर दिया था, वे समन्तभद्र मुनीश्वर किसके स्तुतिपात्र नहीं हैं ? - सभीके द्वारा भले प्रकार स्तुति किये जानेके योग्य हैं ।' (१५) समन्तभद्रके गमकत्व और वाग्मित्व- जैसे गुणों का विशेष परिचय उनके देवागमादि ग्रन्थोंका अवलोकन करनेसे भले प्रकार अनुभवमें लाया जा सकता है तथा उन उल्लेख - वाक्योंपर से भी कुछ जाना जा सकता है जो समन्तभद्र-वाणीका कीर्तन अथवा उसका महत्व ख्यापन करनेके लिये लिखे गये हैं । ऐसे उल्लेखवाक्य अष्टसहस्री आदि ग्रन्थोंमें बहुत पाये जाते हैं । कवि नागराजका 'समन्तभद्र-भारती-स्तोत्र' तो इसी विषयको लिये हुए है और वह 'सत्साधु-स्मरण - मंगलपाठ' में वीरसेवामन्दिरसे सानुवाद प्रकाशित हो चुका है। यहां दो तीन उल्लेखोंका और
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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