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________________ www.vave स्वयम्भूस्तोत्र 'सद्बोधरूप'-सम्यग्ज्ञानकी-भूति-और 'वरगुणालय'-उत्तमगुणोंका आवास-बतलाते हुए यह लिखा है कि 'उनके निर्मलयशकी कान्तिसे ये तीनों लोक अथवा भारतके उत्तर, दक्षिण और मध्य ये तीनों प्रदेश कान्तिमान थे—उनका यशस्तेज सर्वत्र फैला हुआ था। • (१०) विजयवर्णी ने, शृङ्गारचन्द्रिकामें, समन्तभद्रको 'महाकवीश्वर' बतलाते हुए लिखा है कि उनके द्वारा रचे गये प्रबन्धसमूहरूप सरोवरमें, जो रसरूप जल तथा अलङ्काररूप कमलोंसे सुशोभित है और जहाँ भावरूप हँस विचरते हैं, सरस्वती-क्रीडा किया करती है'-सरस्वती देवीके क्रीडास्थल ( उपाश्रय ) होनेसे समन्तभद्रके सभी प्रबन्ध ( ग्रन्थ ) निर्दोष, पवित्र एवं महती शोभासे सम्पन्न हैं।' (११) अजितसेनाचार्यने, अलङ्कारचिन्तामणिमें, कई पुरातन पद्य ऐसे संकलित किये हैं जिनसे समन्तभद्रके वाद-माहाम्यका कितना ही पता चलता है। एक पद्यसे मालूम होता है कि 'समन्तभद्रकालमें कुवादीजन प्रायः अपनी स्त्रियों के सामने तो कठोर भाषण किया करते थे-उन्हें अपनी गर्वोक्तियां अथवा बहादुरीके गीत सुनाते थे-परन्तु जब योगी समन्तभद्रके सामने आते थे तो मधुरभाषी बनजाते थे और उन्हें 'पाहि पाहि'रक्षा करो रक्षा करो अथवा आप ही हमारे रक्षक हैं-ऐसे सुन्दर मृदुल वचन ही कहते बनता था।' और यह सब समन्तभद्रके " असाधारण व्यक्तित्वका प्रभाव था। दूसरे पद्यसे यह जाना जाता है कि 'जब महावादी श्रीसमन्त- . भद्र (सभास्थान आदिमें) आते थे तो कुवादीजन नीचामुख करके अँगूठोंसे पृथ्वी कुरेदने लगते थे अर्थात् उन लोगों पर
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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