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प्रस्तावना
ग्रन्थ-नाम
इस ग्रन्थका सुप्रसिद्ध नाम 'स्वयम्भू स्तोत्र' है। 'स्वयम्भू'शब्दसे यह प्रारम्भ होता है, जिसका तृतीयान्तपद स्वयम्भुवा'
आदिमें प्रयुक्त हुआ है । प्रारम्भिक शब्दानुसार स्तोत्रोंका नाम रखनेकी परिपाटी बहुत कुछ रूढ है। देशगम, सिद्धिप्रिय, भक्तामर, कल्याणमन्दिर और एकीभाव जैसे स्तोत्र-नाम इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं-ये सब अपने अपने नामके शब्दोंसे ही प्रारम्भ होते हैं। इस तरह प्रारंभिक शब्दकी दृष्टि से 'स्वयम्भूस्तोत्र' यह नाम जहाँ सुघटित है वहाँ स्तुति-पात्रकी दृष्टि से भी वह सुघटित है; क्योंकि इसमें स्वयम्भुवोंकी-स्वयम्भू-पदको प्राप्त चतुर्विशति जैनतीर्थङ्करोंकी-स्तुति की गई है । दूसरोंके उपदेश-विना ही जो स्वयं मोक्षमार्गको जानकर और उसका अनुष्ठान करके अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तसुख और अनन्तवीर्यरूप आत्मविकासको प्राप्त होता है उसे 'स्वयम्भू' कहते हैं । वृषभादिवीरपर्यन्त चौवीस जैनतीर्थङ्कर ऐसे ही अनन्तचतुष्टयादिरूप आत्मविकासको प्राप्त हुए हैं, स्वयम्भू-पदके स्वामी हैं और इसलिये
१ "स्वयं परोपदेशमन्तरेण मोक्षमार्गमवबुद्धय अनुष्ठाय वाऽनन्तचतुष्टयतया भवतीति स्वयम्भूः ।" प्रभाचन्द्राचार्यः