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________________ •७८ स्वयम्भूस्तोत्र ख्यापित करते हुए उसे 'तीर्थ' बतलाया है-संसारसे पार उतरने का उपाय सुझाया है-और 'दम-तीर्थ-नायक:' तथा 'अनवद्यविनय-दमतीर्थ-नायकः' जैसे पदों-द्वारा जैनतीर्थंकगेको उस तीर्थका नायक बतला कर यह घोषित किया है कि जैनतीर्थंकरोंका शासन इन्द्रिय-कषाय-निग्रहपरक है (१०४,१२२)। साथ ही, यह भी निर्दिष्ट किया है कि वह दम (दमन) मायाचार रहित निष्कपट ‘एवं निर्दोष होना चाहिये-दम्भके रूपमें नहीं (१४१) । इस दम के साथी-सहयोगी एवं सखा (मित्र) है यम-नियम, विनय, तप और दया । अहिंसादि व्रतानुष्ठानका नाम 'यम' है। कोई व्रतानुष्ठान जब यावज्जीवके लिये न होकर परमितकालके लिये होता है तब वह 'नियम' कहलाता है' । यमको ग्रन्थमें 'सप्रयामदमायः' (१४१) पदके द्वारा 'याम' शब्दसे उल्लेखित किया है जो स्वार्थिक 'अण' प्रत्ययक्ने कारण यमका ही वाचक है और 'प्र' उपसर्गके साथमें रहनेसे महीयम (महाव्रतानुष्ठान) का सूचक हो जाता है। इस यम अथवा महायमको ग्रन्थमें 'अधिगतमुनि-सुव्रत-स्थितिः (१११)' पढ़के द्वारा 'सुवत' भी सूचित किया है और वे सुवत अहिंसादिक महावत ही है, जिन्हें कर्मयोगीको भले प्रकार अधिगत और अधिकृत करना होता है। ग्नियमें अहंकारका त्याग और दूसरा भी कितना ही सदाचार शामिल है । तपमें सांसारिक इच्छाओंके निरोधकी प्रमुखता है और वह बाह्य तथा अभ्यन्तरके भेदसे दो प्रकारका है। वाह्यतप अनशनादिक-रूप है और वह अन्तरंग तपकी वृद्धिके लिये १ नियमः परिमितकालो यावज्जीवं यमो ध्रियते । -रत्नकरण्ड ८७ २ अनशनाऽवमोदर्य-व्रतपरिसंख्यान-रमपरित्याग-विविक्तशय्यासनकायक्लेशा बाह्यतमः।-तत्त्वार्थसूत्र ६-१६॥ ..
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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