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________________ ܀܀܀܀܀܀ܕ ܀܀ ***** ܀܀܀܀ स्वयम्भू-स्तोत्र ܀܀܀܀ ܀܀ विना भीमैः शस्त्रैरदय - हृदयाऽमर्ष - विलयं ततस्त्वं निर्मोहः शरणमसि नः शान्ति-निलयः || ५ || (१२०) के ' (हे नमि - जिन !) आभूषण, वेष तथा व्यवधान (वस्त्र-प्रावरणादि) सेहत और इन्द्रियोंकी शान्तताको—अपने अपने विषयोंमें वांछाकी निवृत्तिको लिये हुए आपका नग्न दिगम्बर शरीर चूँकि यह बतलाता है कि आपने कामदेवके वाणोंके विषसे होनेवाली चित्त की पीडा अथवा अप्रतीकार व्याधिको जीता है और विना भयंकर शास्त्रोंके ही निर्दयहृदय क्रोधका विनाश किया है, इस लिये आप निर्मोह हैं और शान्ति सुखके स्थान हैं । अतः हमारे शरण्य हैं - हम भी निर्मोह होना और शान्ति सुखको प्राप्त करना चाहते हैं, इससे हमने आपकी शरण ली है ।' २२ श्रीश्ररिष्टनेमि जिन स्तवन ७७ ++++++-- भगवानृषिः परम-योगदहन - हुत- कल्मषेन्धनः । ज्ञान - विपुल - किरणैः सकलं प्रतिबुध्य बुद्ध-कमलायतेक्षणः || १ || हरिवंश - केतुरनवद्यविनय-दम-तीर्थ-नायकः । ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ܣ܀
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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