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/समन्तभद्र-मारती
रण द्वारा अधिकृत करनेवाले - ( और इसलिए ) 'मुनि - सुव्रत' इस वर्थसंज्ञाके धारक हे निष्प ( श्रातिकर्म-चतुष्टयरूप पापसे रहित ) मुनिराज ! आप मुनियोंकी परिषद्-गणधरादि ज्ञानियों की सभा ( समवसरण ) में - उसी प्रकार शोभाको प्राप्त हुए हैं जिस प्रकार कि नक्षत्रों के समूह से परिवेष्ठित चन्द्रमा शोभाको प्राप्त होता है ।' परिणत - शिखि-कण्ठ-रागया कृत-मद- निग्रह - विग्रहाऽऽभया । तत्र जिन ! तपसः प्रसूतया ग्रह-परिवेष- रूचेव शोभितम् ||२||
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'मद मदन अथवा अहंकार के निग्रहकारक —— निरोधसूचकशरीरके धारक हे मुनिसुव्रत जिन ! आपका शरीर तपसे उत्पन्न हुई तरुण मोर के कण्ठवर्ण-जैसी आभासे उसी प्रकार शोभित हुआ है जिस प्रकार कि परिवेषकी चन्द्रमा के परिमण्डलकीदीप्ति शोभती है ।'
शशि-रुचि शुचि-शुक्ल- लोहितं सुरभितरं विरजो निजं वपुः । तव शिवमतिविस्मयं यते ! यदपि च वाङ्मनसीयमीहितम् ||३||
'हे यतिराज ! आपका अपना शरीर चन्द्रमाकी दीप्ति सम्मान निर्मल शुक्ल रुधिस्से युक्त, अतिसुगन्धित, रजरहित, शिवस्वरूप. ( स्व-पर-कल्याणमय ) तथा अति आश्चर्य को लिए हुए
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