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________________ ७२. /समन्तभद्र-मारती रण द्वारा अधिकृत करनेवाले - ( और इसलिए ) 'मुनि - सुव्रत' इस वर्थसंज्ञाके धारक हे निष्प ( श्रातिकर्म-चतुष्टयरूप पापसे रहित ) मुनिराज ! आप मुनियोंकी परिषद्-गणधरादि ज्ञानियों की सभा ( समवसरण ) में - उसी प्रकार शोभाको प्राप्त हुए हैं जिस प्रकार कि नक्षत्रों के समूह से परिवेष्ठित चन्द्रमा शोभाको प्राप्त होता है ।' परिणत - शिखि-कण्ठ-रागया कृत-मद- निग्रह - विग्रहाऽऽभया । तत्र जिन ! तपसः प्रसूतया ग्रह-परिवेष- रूचेव शोभितम् ||२|| ܀܀܀܀܀܀܀܀ 6 'मद मदन अथवा अहंकार के निग्रहकारक —— निरोधसूचकशरीरके धारक हे मुनिसुव्रत जिन ! आपका शरीर तपसे उत्पन्न हुई तरुण मोर के कण्ठवर्ण-जैसी आभासे उसी प्रकार शोभित हुआ है जिस प्रकार कि परिवेषकी चन्द्रमा के परिमण्डलकीदीप्ति शोभती है ।' शशि-रुचि शुचि-शुक्ल- लोहितं सुरभितरं विरजो निजं वपुः । तव शिवमतिविस्मयं यते ! यदपि च वाङ्मनसीयमीहितम् ||३|| 'हे यतिराज ! आपका अपना शरीर चन्द्रमाकी दीप्ति सम्मान निर्मल शुक्ल रुधिस्से युक्त, अतिसुगन्धित, रजरहित, शिवस्वरूप. ( स्व-पर-कल्याणमय ) तथा अति आश्चर्य को लिए हुए ܀܀܀܀܀܀܀܀
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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