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________________ १०. स्वयम्भूस्तोत्र (७) सुपार्श्व-जिन सर्वतत्त्वके प्रमाता (ज्ञाता) और माता की तरह लोकहित के अनुशास्ताथे। उन्होंने हितकी जो बातें कही हैं उन्हींका सार इस स्तवनमें दिया गया है। (८) चन्द्रप्रभ-जिन चन्द्रकिरण-सम-गौरवर्ण थे, द्वितीय चन्द्रमाकी समान दीप्तिमान थे । उनके शरीरके दिव्य प्रभामण्डलसें बाह्य अन्धकार और ध्यान-प्रदीपके अतिशयसे मानस अन्धकार दूर हुआ था। उनके प्रवचनरूप सिंहनादोंको सुनकर अपने पक्षकी सुस्थितिका घमण्ड रखने वाले प्रवादिजन निर्मद हो जाते थे । और वे लोकमें परमेष्ठिके पदको प्राप्त हुए हैं। (E) सुविधि-जिन जगदीश्वरों (इन्द्रचक्रवादिकों ) के द्वारा अभिवन्द्य थे। उन्होंने जिस अनेकान्तशासनका प्रणयन किया है उसका सार पांचों पद्योंमें दिया है। (१०) शीतल-जिनने अपने सुखाभिलाषारूप अग्निके दाहसे मूर्छित हुए मनको कैसे मूर्खा रहित किया और कैसे वे दिन-रात आत्मविशुद्धिके मार्गमें जागृत रहते थे, इन बातोंको बतलानेके बाद उनके तपस्याके उद्देश्य और व्यक्तित्वकी दूसरे तपस्त्रियों आदिसे तुलना करते हुए लिखा है कि 'इसीसे वे बुधजनश्रेष्ठ आपकी उपासना करते हैं जो अपने आत्मकल्याणकी भावनामें तत्पर हैं। (११) श्रेयो जिनने प्रजाजनोंको श्रेयोमार्गमें अनुशासित किया था। उनके अनेकान्त-शासनकी कुछ बातोंका उल्लेख करनेके बाद लिखाहै कि वे केवल्य-विभूतिके सम्राट् हुए हैं। (१२) वासुपूज्य-जिन अभ्युदय क्रियाओंके समय पूजाको प्राप्त हुए थे, त्रिदशेन्द्र-पूज्य थे और किसीकी पूजा या निन्दासे कोई प्रयोजन नहीं रखते थे । उनके शासनकी कुछ बातोंका
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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