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________________ प्रस्तावना प्रकट होता है । और उन्होंने उस महान् एवं ज्येष्ट धर्मतीर्थका प्रणयन किया था जिसे प्राप्त होकर लौकिक जन दुःखपर विजय प्राप्त करते हैं। _ (३) शम्भव-जिन इस लोकमें तृष्णा रोगोंसे संतप्त जनसमूहके लिये एक आकस्मिक वैद्यके रूप में अवतीर्ण हुए थे और उन्होंने दोष-दूषित एवं प्रपीड़ित जगतको अपने उपदेशों-द्वारा निरंजना शांतिकी प्राप्ति कराई थी। आपके उपदेशका कुछ नमूना दो एक पद्योंमें दिया है और फिर लिखा है कि 'उन पुण्यकीर्तिकी स्तुति करनेमें शक्र (इन्द्र) भी असमर्थ रहा है। ___ (४) अभिनन्दन-जिनने (लौकिक वधूका त्याग कर) उस दयावधूको अपने आनयमें लिया था जिसकी सखी क्षमा थी और समाधिकी सिद्धिके लिए बाह्याऽभ्यन्तर दोनों प्रकारके परिग्रहका त्याग कर निर्ग्रन्थताको धारण किया था। साथ ही, मिथ्याभिनिवेशके वशसे नष्ट होते हुए जमातको हितका उपदेश देकर तत्त्वका ग्रहण कराया था। हितका जो उपदेश दिया गया था उसका कुछ नमूना ३-४ पद्योंमें व्यक्त किया गया है। (५) सुमति-जिनने जिस सुयुक्ति-नीत तत्त्वका प्रणयन किया है उसीका सुन्दर सार इस स्तवनमें दिया गया है। (६) पद्मप्रभ--जिन पद्मपत्रके समान रक्तवर्णाभ शरीरके धारक थे। उनके शरीरकी किरणोंके प्रसारने नरों और अमरोंसे पूर्ण सभाको व्याप्त किया था-सारी समवसरणसभामें उनके शरीरकी आभा फैली हुई थी । प्रजाजनोंकी विभूतिके लिये-उनमें हेयोपादेयके विवेकको जागृत करनेके लिये उन्होंने भूतलपर विहार किया था और विहारके समय (इन्द्रादिरचित) सहस्रदल"कमलोंके मध्यभागपर चलते हुए अपने चरण-कमलों-द्वारा नभस्तलको पल्लवमय बना दिया था। उनकी स्तुतिमें इन्द्र असमर्थ रहा है। .
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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