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________________ ,समन्तभद्र-भारती . 'हे भगवन् । पूजा-वन्दनासे आपका कोई प्रयोजन नहीं है, । है क्योंकि आप वीतरागी हैं--रागूका अंश भी आपके आत्मामें विद्यहै. मान नहीं है, जिसके कारण किसीकी पूजा-वन्दनासे आप प्रसन्न होते।। (इसी तरह) निन्दासे भी आपका कोई प्रयोजन नहीं है कोई . कितना ही आपको बुरा कहे, गालियाँ दे, परन्तु उसपर आपको ज़रा भी। होम नहीं अासकता; क्योंकि अापके आत्मासे वैरभाव-द्वषांश-बिल्कुल ! निकल गया है-वह उसमें विद्यमान ही नहीं हैं,जिससे क्षोभ तथा । अप्रसन्नतादि कार्योंका उद्भव हो सकता । ऐसी हालतमें निन्दा और स्तुति दोनों ही आपके लिए समान हैं-उनसे आपका कुछ भी बनता या बिगड़ता। नहीं हैं। फिर भी आपके पुण्य-गुणोंका स्मरण हमारे चित्तको पाप-मलोंसे पवित्र करता है। और इस लिये हम जो आपकी पूजा- ! वन्दनादि करते हैं यह आपके लिए नहीं--अापको प्रसन्न करके आपकी कृपा सम्पादन करना या उसके द्वारा आपको लाभ पहुँचाना, यह सब उस- ! का ध्येय ही नहीं है । उसका ध्येय है आपके पुण्यगुणोंका स्मरण-भावपूर्वक अनुचिन्तन-,जो हमारे चित्तको-चिद्रूप आत्माको-पाप-मलांसे छुड़ा कर निर्मल एवं पवित्र बनाता है, और इस तरह हम उसके द्वारा अपने 2. अात्माके विकासकी साधना करते हैं । अतः वह अापकी पूजा-वन्दना हम अपने ही हितके लिये करते हैं।' पूज्यं जिनं त्वाऽचयतो जनस्य सावध-लेशो बहु-पुण्य-राशौ । दोषाय नाऽलं कणिका विषस्य न दूषिका शीत-शिवाऽम्बुराशौ ॥३॥ हे पूज्य जिन श्रीवासुपूज्य ! आपकी पूजा करते हुए प्राणी- ।
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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