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________________ स्वयम्भू-स्तोत्र . १२ श्रीवासुपूज्य-जिन-स्तवन शिवासु पूज्योऽभ्युदय-क्रियासु त्वं वासुपूज्यस्त्रिदशेन्द्र-पूज्यः । मयाऽपि पूज्योऽल्प-धिया मुनीन्द्र ! दीपार्चिषा किं तपनो न पूज्यः ॥ १॥ ___ 'हे ( वसुपूज्य-सुत ) श्रीवासुपूज्य मुनीन्द्र ! आप शिवस्वरूप अभ्युदयक्रियाओं में पूज्य हैं-मङ्गलमय स्वर्गावतरणादि कल्याणक* क्रियाओंके अवसरपर पूजाको प्राप्त हुए. हैं--, त्रिदशेन्द्रपूज्य हैं। देवेन्द्रोंके द्वारा पूजे गये हैं, पूजे जाते हैं-और मुझ अल्पबुद्धिके द्वारा * भी पूज्य हैं-मैं भी स्तुत्यादिके रूपमें आपकी पूजा किया करता हूँ। (अल्प बुद्धि के द्वारा पूजा जाना कोई असंगत बात भी नहीं है, क्योंकि) । दीप-शिखाके द्वारा क्या सूर्य पूजा नहीं जाता-पूजा ही जाता है। लोग दीपक जलाकर सूर्यकी आरती उतारते हैं, दीप-शिखासे उसकी पूजा करते हैं।' न पूजयाऽर्थस्त्वयि वीतरागे न निन्दया नाथ ! विवान्त-वैरे। तथाऽपि ते पुण्य-गुण-स्मृतिनः पुनाति* चित्तं दुरिताञ्जनेभ्यः ॥२॥ * 'पुनातु' सम्पादनमें उपयुक्त प्रतियोंका पाठ ।
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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