________________
२६
܀܀܀܀܀܀
समन्तभद्र-भारती
प्रकार बालकको हितकी उसके भलेकी शिक्षा देती है उसी प्रकार आप हेयोपादेयके ज्ञानसे रहित बालक-तुल्य जनसमूहको हितका—-निःश्रेयस (मोक्ष) तथा उसके कारण सम्यग्दर्शनादिका — उपदेश देनेवाले हैं, और जो गुणावलोकी जन है-गुणांकी तलाश में रहनेवाला भव्यजीव है-उसके आप नेता हैं- बाधक कारणोंको हटाकर. आत्मीय ग्रनन्तदर्शनादि गुणोंको प्राप्त कर लेनेके कारण उसे उन गुणोंकी प्राप्तिका मार्ग दिखानेवाले हैं । इसीसे मैं भी इस समय भक्तिपूर्वक आपकी स्तुति में प्रवृत्त हुआ हूँ - मेरे भी ग्राप नेता हैं, मुझे भी पके सत्-शासन के प्रतापसे श्रात्मीय-गुणांकी प्राप्तिका मार्ग सूभ पड़ा है।'
:
܀܀܀܀܀܀܀܀܀ ܀܀܀ ܡܝ
܀
श्रीचन्द्रप्रभ - जिन-स्तवन
1-200520-1-1-1
चन्द्रप्रभं चन्द्र मरीचि-गौर
चन्द्रं द्वितीयं जगतीव कान्तम् । वन्देऽभिवन्द्यं महतामृषीन्द्रं
जिनं जित-स्वान्त - कषाय-बन्धम् ||१||
'मैं उन श्रीचन्द्रप्रभ - जिनकी वन्दना करता हूँ, जो चन्द्रकिरण - सम- गौरवर्ण से युक्त जगतमें द्वितीय चन्द्रमाकी समान दीप्तिमान् (और इसलिये 'चन्द्रप्रभ' इस सार्थक संज्ञाके धारक) हुए हैं,
A
܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀