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________________ स्वयम्भू-स्तोत्र , • २५ | टलती। और इस भवितव्यताकी अपेक्षा न रखनेवाला अहंकारसे पीडित । में हुआ संसारी प्राणी (यन्त्र-मन्त्र-तन्त्रादि) अनेक सहकारी कारणोंको ! मिलाकर भी सुखादिक कार्योंके सम्पन्न करने में समर्थ नहीं होता।' ! विभेति मृत्योर्न ततोऽस्ति मोक्षो नित्यं शिवं वांञ्छति नाऽस्य लाभः । तथाऽपि बालो भय-काम-वश्यो वथा स्वयं तप्यत इत्यवादीः ॥४॥ 'आपने यह भी बतलाया है कि यह संसारी प्राणी मृत्युसे । डरता है परन्तु (अलंघ्यशक्ति-भवितव्यता-वश ) उस मृत्युसे छुटकारा नहीं, नित्य ही कल्याण अथवा निर्वाण चाहता है परन्तु (भावीकी ! उसी अलंघ्यशक्ति-वश ) उसका लाभ नहीं होता। फिर भी यह मूढ प्राणी भय और इच्छाके वशीभूत हुआ स्वयं ही वृथा तप्तायमान होता है। लेकिन डरने तथा इच्छा करने मात्रसे कुछ भी नहीं बनता, उलटा दुःख-सन्ताप उठाना पड़ता है।' सर्वस्य तत्त्वस्य भवान् प्रमाता मातेव बालस्य हिताऽनुशास्ता । गुणाऽवलोकस्य जनस्य नेता मयाऽपि भक्त्या परिणूयतेऽद्य* ॥५॥ (३५) (हे सुपाव जिन !) आप सम्पूर्ण तत्त्व-समूहके-जीवादिविश्व-तत्त्वोंके-प्रमाता हैं-संशयादि-रहित ज्ञाता हैं, माता जिस है. परिणूयसे' यह उपलब्ध प्रतियोंका पाठ 'भवान्' शब्दकी मौजूदगी। में कुछ ठीक प्रतीत नहीं होता ।
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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