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________________ प्रस्तावना सार ग्रन्थ है। अनगार-धर्मामृतकी टीका-प्रशस्तिमें इसके लिये जिन वीन विशेषणोंका प्रयोग किया गया है वे इस पर ठीक-ठीक घटित होते हैं। यह निःसन्देह 'प्रसन्न और 'गम्भीर' है। प्रसन्न इसलिये कि यह झटसे अपने अर्थको प्रतिपादन करनेमें समर्थ है और गम्भीर इसलिये कि इसकी अर्थव्यवस्था दूसरे अध्यात्मशास्त्रोंकी-समाधितन्त्र तथा तत्वानुशासनादि-जैसे ग्रन्थोंकी-भी अपेक्षाको साथमें लिये हुए हैक । योगका प्रारम्भ करनेवालोंके लिये तो यह बड़े ही कामकी चीज है उन्हें योगका मर्म समझाकर ठीक मार्ग पर लगानेवाली तथा उनके योगाभ्यासका उद्दीपन करनेवाली है। और इसलिये इसे उनके प्रेमकी अधिकारिणी एवं प्रिय वस्तु कहना बहुत ही स्वाभाविक है । ग्रन्थका सारा विषय अध्यात्म-योगसे सम्बन्ध रखता है। उसका प्रारम्म ही 'मार्गादारूढयोगः स्यान्मोक्ष-लक्ष्मीकटाक्षभाक् (२), स योगी योगपारगः (३)-जैसे वाक्योंसे होता है और इसलिये ग्रन्थका दूसरा नाम 'योगोद्दीपन' सार्थक ही नान पड़ता है। अध्यात्म-रसिक वृद्ध पिताजीके आदेशसे लिखी गई यह कृति आशाधरजीके सारे जीवनॐ प्रसन्नगंभीर-प्रसन्न झगित्यर्थप्रतिपादनसमर्थम् । गम्भीर शास्त्रान्तर-सव्यपेक्षार्थ । प्रसन्नच तद्गम्भीरं च प्रसन्न-गम्भीरं । -अनगारधर्मामृत-प्रशस्ति-टिप्पणी ।
SR No.010649
Book TitleAdhyatma Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1957
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size4 MB
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