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अध्यात्म-रहस्य
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अपना ही कार्य था।
अन्तमें मेरी यही भावना है कि इस ग्रन्थके अनुवादादिको प्रस्तुत करने में जिस सद्भावका उदय हुआ और जो श्रम बन पड़ा है वह मेरे तथा दूसरोंके आत्मविकासमें सहायक होवे। वीरसेवामन्दिर, दिल्ली । जुगलकिशोर, युगवीर मगसिर सुदि ३, सं० २०१४
शुद्धि-विधान पृष्ठ ५० पंक्ति में 'प्रत्येक से पूर्व 'इनमेसे' शब्द छपनेसे छूट गये हैं। और पृष्ठ ७५ पर तीसरी पंक्तिम 'ही' के पूर्वका 'न' अक्षर दूसरी पंक्तिमें 'पदार्थ के पूर्व जुड़ गया है अतः पाठक प्रेस को इन दो मोटी अशुद्धियोंको सुधार लेनेकी कृपा करें।
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