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प्रकाशकीय आज 'अध्यात्म-रहस्य' नामक एक ऐसे दुर्लभ एवं महत्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थरत्नको अनुवादादिके साथ पाठकोंके हाथोंमें देते हुए बड़ी प्रसन्नता होती है जो चिर-प्रतीक्षित था, जिसका बहुतसे शास्त्र भण्डारोंकी खोज हो जाने पर भी कहींसे कोई पता नहीं चल रहा था, और जिसको निर्मित हुए आन ७१४ वर्षसे भी ऊपरका समय हो चुका है। समाजके लिये यह एक बड़े ही सौभाग्यकी वात है जो अजमेर वड़ा धड़ा पंचायती जैन मन्दिरके भट्टारकीय शास्त्रभएडारकी छानबीन करते समय मुख्तारश्री जुगलकिशोरजीको दो वर्ष हुए यह अतीव उपयोगी ग्रन्थ एक जीर्ण-गुटकेसे उपलब्ध हुआ है। इसने मुख्तारश्रीको अपनी ओर इतना आकर्षित किया कि उनके हृदयमें इसके अनुवादादिका. भाव जागृत हो उठा और उनकी सहज प्रेरणा पर प्रकाशनके लिये कुछ सज्जनोंका आर्थिक सहयोग भी प्राप्त हो गया। ग्रन्थकी व्याख्या तथा प्रस्तावनाके प्रस्तुत करनेमें जो स्तुत्य-श्रम हुआ है आशा है उससे पाठकजन यथेष्ट लाभ उठाने में प्रवृत्त होंगे और यह ग्रन्थ लोकमें अध्यात्म-योग-विषयक रुचिको प्रोजन देने में समर्थ होगा।
जयन्तीप्रसाद जैन, प्रभाकर