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________________ ८२ सम्मति - विद्या प्रकाशमाला बचतका लाभ समझा और वही लाभ उससे उठाया - अपने घर में उसे दीपकके स्थान पर प्रकाशके लिये रख दिया । इससे स्पष्ट है कि यदि किसीके भाग्यका उदय न हो तो दूसरा उसे क्या सहायता पहुँचा सकता है । रही सोहनको सुखी बनानेकी बात केवल धन देकर कोई किसीको सुखी नहीं बना सकता । धनका दुरुपयोग भी हो सकता है और वह विपत्तिका कारण भी वन सकता है । दानकी रात्रिको ही उस धनको चोर डाकू लेजा सकते थे और उसके कारण सोहन तथा उसके कुटुम्बीजनोंकी जानके लाले भी पड़ सकते थे । अतः एकमात्र दानकी उस रकमको सुखका कारण नहीं कहा जा सकता। सोहनके सुखी होनेका प्रमुख कारण उसके भाग्यका अथवा सातावेदनीय आदि शुभ कर्मो का उदय है, सुखमें बाधक अन्तरायादि कर्मोंका क्षयोपशम है, उसकी बुद्धिका विकास है, जिससे दानमें प्राप्त हुई उस रकमका वह सदुपयोग कर सका; और साथ ही उसके उन श्रात्म- दोषोंमें कमीका भी प्रभाव है जो उसे अशान्त तथा उद्विग्न बनाये हुए थे । ऐसी स्थिति में मोहनका सोहनको सुखी बनानेका अहंकार व्यर्थ है । वास्तवमें सुख पौद्गलिक घनका कोई गुण भी नहीं है। ऐसे प्रचुर धनके स्वामियोंको भी बहुधा दुखी देखने में आता है । सुख तो आत्माका निज गुण है और वह
SR No.010649
Book TitleAdhyatma Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1957
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size4 MB
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