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________________ ७ सन्मति-विद्या प्रकाशमाला आविष्कृत होता है। बहिरंग कारण द्रव्य क्षेत्र-कालभावादिक रूपमें अनेक हुआ करते हैं, जिनमें तुम्हारा योग-दान भी एक कारण हो सकता है, और इसलिये योग्य-कारण-कलापके मिलापसे ही कार्य बनता हैकिसी अकेले अथवा एक ही कारणके वह. वशका नहींऔर इस प्रकारसे निष्पन्न होनेवाले कार्यका नाम भी भवितव्यता है। अथवा यों कहिये कि किसी कार्यके बननेविगड़नेके लिये तद्योग्य कारण-कलापके भावी मिलापका नाम भविव्यता है । यह नहीं हो सकता कि योग्य कारणकलाप मिले और कार्य न हो । इसीसे भवितव्यताको 'अलंध्यशक्ति' कहा है, जिसके लिये प्रकृत पद्यमें 'भगवती' शब्दका प्रयोग किया गया है। उसका यह अर्थ नहीं कि वाद्य तथा अन्तरंग दोनों प्रकारकी साधन-सामग्रीकी पूर्णता तो न हो और कार्य यों ही भवितव्यतावश वन जाय । इसीसे स्वामी समन्तभद्रने कार्योत्पत्तिमें इस उभय प्रकारकी साधनसामग्रीकी पूर्णताको द्रव्यगत स्वभावके रूपमें अति आवश्यक बतलाया है। अन्यथा मोक्षकी कोई विधिव्यवस्था भी नहीं बन सकेगी; जैसा कि स्वामीजीके उक्त स्तोत्र-गत निम्न वाक्यसे प्रकट है:- . . बाह्य वरोपाधि समप्रतेय कार्येषु ते द्रव्यगतः स्वभावः । नैवाऽन्यथा मोक्षविधिश्च पुसा तेनामिवंधत्वमृषिर्बुधानी ॥
SR No.010649
Book TitleAdhyatma Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1957
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size4 MB
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