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________________ क्यामखां रासा भूमिका सूर पीर पर मीन जल, इनको येक सुभाइ । रफि रफि दोऊ मरै, जो पानी प्यादे जाइ । रहे न केहूँ हीन जल, सहे न दोऊ गार । सूर वीर चुनि मीनको, पानी हीसौं प्यार ॥ येक यात कवि जान कहि, बढ्यौ मीनतें सूर । मीन मरे पानी घटे, सूर मरे जल पूर ॥ ताहरखां कीनौ गवन, स्रवन सुने ये यैन । वस्त्र भगौहे है गये, रत रोये जुग नैन । पूनोको पहुंच्यौ नहीं, भग कमोदनि मंद । यह बपरीत लागे बुरी, गह्यो सप्ली चंद ॥ थारीके मुक्का भये, ठरे ठरे ही जाहि । सुरतर ताहरखांन बिनु, केहूं न हग ठहराइ । हिय कमल नाहिन खुलत, मुर्मित पल पल माहि । छवि रवि ताहरखांन जू, डिष्ट परत है नांहि ॥ कहु कैसे के ऊपजे, नैन चकोर अनंद । कहूं डिष्ट परै नहीं, ताहरखां मुखचन्द ।। मीर करि ताहरखांन ज, हितवन हिय हित दीन । नैन बहन हिरदै दहन, मनहि गहन तन छीन ॥ धर्मराज कैसे कहूँ, कौन धर्म यहु आहि । काटत ऐसो कलपतर, कृपा न उपजी काहि ।। सुरज नाव कहाहि है, उलटौ सबै सुभाइ । छुप्यो रहत है स्योसकू, निसको निकसत आई ॥ दिल्लीका यह वर्णन भी पठनीय है अनंत भताहरि भखि गइ, नैकु न आई लाज । येक मरै दूजै धरै, यहै दिल्लीको काज ॥ जात गोत पछत नहीं, जोई पकरत पान । ताहिसौं हिन मिल चलें, पै भखि जार निदान ॥
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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